जीवन में अहिंसा, नैतिकता और खान-पान में शुद्धता हो: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में अहिंसा, नैतिकता और खान-पान में शुद्धता हो: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 31 अक्टूबर, 2023
आज कार्तिक कृष्णा तृतीया है। आज से लगभग 126 वर्ष पूर्व सुजानगढ़ में हमारे षष्ठमाचार्य पूज्य माणकगणी का महाप्रयाण हो गया था। वे सरदारशहर में युवाचार्य-आचार्य बने थे। आज उनका 127वाँ महाप्रयाण दिवस है। आस्था के अनन्य केंद्र आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी का रसास्वाद कराते हुए फरमाया कि धर्म की साधना सामान्य घर में, सामान्य परिवार में पैदा हुआ आदमी कर सकता है, तो उच्च घरानों में, राजघरानों में पैदा हुए लोग भी धर्म के पथ पर आगे बढ़ सकते हैं। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी छोटे से गाँव से साधु बन गए तो पूज्य माणकगणी तो बड़े शहर से थे। भीतर में जो क्षयोपशम है, वह महत्त्वपूर्ण है। गाँव या नगर नहीं।
बालक माणक पर जयाचार्य की दृष्टि पड़ी थी। उनकी दीक्षा में जयाचार्य की भी प्रेरणा रही। जयपुर शहर से माणक जैसा बालक धर्मसंघ को साधु रूप में प्राप्त हुआ जो हमारे षष्ठम आचार्य बने थे। सरदारशहर में मघवागणी ने मुनि माणक को युवाचार्य पद पर स्थापित किया था। तीन दिन बाद मघवागणी के महाप्रयाण के पश्चात वे आचार्य पद पर आरूढ़ हुए थे। पूज्य माणकगणी के मन में धर्मसंघ में कुछ नवीनता लाने का चिंतन था, पर कार्तिक कृष्णा वि0सं0 1954 को सुजानगढ़ में महाप्रयाण हो गया था। हम परम पूज्य माणकगणी के प्रति अभ्यर्थना अभिव्यक्त करते हैं। भगवती सूत्र में राजकुलों के बारे में बताया गया हैµउग्र, भोज, राजन्य, इच्छवाकु नाम और पौरव ये छः उच्च राजकुल के नाम दिए गए हैं। यहाँ प्रश्न किया गया है कि ये राजकुल के व्यक्ति साधना कर सिद्धत्व को प्राप्त हो सकते हैं? उत्तर दिया गया हाँ गौतम! इन राजकुलों से भी लोग दीक्षित हो धर्म साधना कर आठों कर्मों का क्षय करते हैं। राजकुल के लोग भी धर्म और साधुत्व को स्वीकार कर सकते हैं। वे सांसारिक कार्य में ही नहीं, धर्म में भी शौर्य का उपयोग कर सकते हैं।
जैन शासन में ऐसे व्यक्ति भी दीक्षित हुए हैं, कई श्रावक बने हैं, जो क्षत्रिय और राजकुलों में पैदा होने वाले लोग हैं। राजनीति भी कार्य करने का एक कार्यक्षेत्र है। राजनीति के लोग भी शुद्धता-न्याय-नीति का ध्यान रखें। राजनीति में सेवा की भावना और धर्म प्रभावित राजनीति रहे। जीवन में अहिंसा, नैतिकता और खान-पान में शुद्धता हो। एक समय तक राजनीति कर बाद में धर्म नीति में लग जाएँ। उम्र आने के पश्चात जीवन में मोड़ लेना चाहिए। समाज में भी धार्मिक, आध्यात्मिक सेवा दें। रामायाण में भी यही बताया गया है कि उम्र के बाद धर्म को जोड़ लेना चाहिए। साधु भी युवावस्था में लंबी यात्रा कर सकता है। गृहस्थ भी 50 की उम्र के बाद रोज एक सामायिक करने का प्रयास करे। हम सभी धर्म की साधना करने का प्रयास करें, यह काम्य है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।