ज्ञान विकास के उत्कृष्ट भंडार हैं आगम : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 30 अक्टूबर, 2023
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रश्न किया है-भंते! प्रवचन-प्रवचन है, प्रावचनी-प्रवचन है? प्रवचन और प्रावचनी दो शब्द प्रयोग किए हैं। प्रवचन-प्रकृष्ट वचन, बहुत अच्छा वचन और प्रवचन करने वाला। अर्हत् तीर्थंकर होते हैं, वह नियमतः प्रावचनी होते हैं। प्रवचन जो आगम या द्वादशांगी या गणी पीटक हैं, वे आचार्य की मंजुषा होते हैं। श्रुत आचार्य की एक संपदा होती है। आचार्य की कई संपदाएँ होती हैं। आचार्य के पास स्वर्ण मंजुषा नहीं होती है, पर आचार्य स्वर्ण के गुण ले सकता है। आचार्य के पास तो आगम मंजुषा चाहिए। आचार्य तो तीर्थंकर या आगम की बात के एक आधार हैं। तीर्थंकर तो ऐसा कहते हैं कि मैं यह कह रहा हूँ पर आचार्य तो यह कहते हैं कि भगवान ने आगम में यह कहा है। प्रवचन आगम, द्वादशांगी बारह अंगों वाला है-आचारंग (आयारो) आदि। सूयगड़ो में भगवान महावीर की स्तुति हो ठाणं में 1 से लेकर 10-10 के दस स्थान हैं। समवायों ठाणं की तर्ज पर ही है। व्याख्या प्रज्ञप्ति-भगवती सूत्र है। छठा आगम है-ज्ञाता धर्मकथा इसमें कई घटना-प्रसंग हैं। उपासक दशा में श्रावकों के वर्णन हैं। अंतगड़ दसाओं और अनुत्तरोपपातिक दशा प्रश्न व्याकरण, विवागसूयं और दृष्टिवाद। तीर्थंकरों की वाणी कल्याणी होती है।
अभी हमें यहाँ तीर्थंकर उपलब्ध नहीं है, पर आगम हमारे पास है। ये आगम हमारे मार्गदर्शक-दिशा निर्देशक, एक आधार हैं। इस चतुर्मास में मुझे भगवती सूत्र के बारे में कुछ बताने का अवसर मिला है। प्रवचन करना बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य होता है। प्रवचन से लोगों को धर्म में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्राप्त हो सकती है। चारित्रात्माएँ भी प्रवचन करने का लक्ष्य रखें। आठ प्रहर में एक बार प्रवचन हो जाए। आगम तो ज्ञान विकास के उत्कृष्ट भंडार हैं। हम सभी अपना ज्ञान बढ़ाने का प्रयास करें। पर ज्ञान का घमंड न हो। ज्ञान तो अनंत है। जो अपने अज्ञान को पहचान ले, वह सबसे बड़ा ज्ञानी होता है। तीर्थंकरों के सामने तो हमारे में अल्प ज्ञान है। हम ज्ञान का विकास करते रहें। (शेष पृष्ठ 3 पर)