अर्हम्

अर्हम्

समणी पावनप्रज्ञा जी ने लगभग 27 वर्ष पूर्व समण श्रेणी में दीक्षा ग्रहण की। साधना के प्रति आपका रुझान सदा गतिमान रहा। हमने देखा आप सुबह 3-4 बजे उठ जाती। शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से आप निरंतर आसन-प्राणायाम करती तो आध्यात्मिकता के लिए ध्यान-जप-आगम स्वाध्याय का क्रम भी सदा चलता। अस्वस्थता में भी आपको हमने प्रसन्नचित्त देखा। समय-समय पर शारीरिक वेदना ने आपको घेरा पर आपने समता के साथ उसे सहन किया। आपका मनोबल गजब है। हर परिस्थिति में सम बने रहना, सिखना हो तो आप साक्षात् उदाहरण हैं। आपमें बहुत सारी विशेषताएँ हैं। आप व्यवहार कुशल हैं, धीरे बोलना और मीठा बोलना आपका विशेष गुण है। हर कार्य को आप बड़े तरीके, ढंग से संपादित करती। आपकी स्वच्छता हम लोगों के लिए सिखने लायक है। आपकी हमेशा यही भावना बनी रहती कि मैं संयम रत्न को ग्रहण करूँ एवं संलेखना संथारा के द्वारा अपनी भव नौका को पार करूँ।
गुरुदेवश्री ने आपकी भावना को समझा, समझा ही नहीं अपितु उसे साकार रूप दे दिया। अब आप साध्वी पावनप्रज्ञा जी बन गई। आपके दोनों मनोरथ पूर्ण हो गए। आपने अपने नाम को सार्थक कर दिया। आपकी आत्मा उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकास करे, मंगलकामना।