पुद्गल जगत के प्रति भी हम संयम का प्रयास रखें : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 25 अक्टूबर, 2023
जन-जन को आध्यात्मिक चेतना प्रदान कराने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि भगवती सूत्र में कहा गया है-हमारी इस लोकाकाश की दुनिया में छः द्रव्य हैं। उनमें अमूर्त द्रव्य तो अनेक है, पर मूर्त द्रव्य एक पुद्गलास्तिकाय ही है। मूर्त वह होता है जिसमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श है। ये चार चीजें पुद्गल में होती हैं। पुद्गल के दो प्रकार हैं-जीव युक्त शरीर वाले और जीव मुक्त शरीर वाले। जो सचित हैं, वो जीव युक्त शरीर है। अचित वस्तुएँ जीव मुक्त शरीर वाले हैं। धर्मसंघ के भोजनालय में अनंतकाय जीव वाले जमीकंद का उपयोग न हो। पुद्गल का लघुतम भाग है-परमाणु। पुद्गल की सबसे छोटी इकाई है। परमाणु का विभाजन नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न किया गया है-भंते! परमाणु कितने प्रकार का होता है? उत्तर है-परमाणु चार प्रकार का होता है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव परमाणु। इन चार प्रकारों में द्रव्य परमाणु कितने प्रकार का होता है? द्रव्य परमाणु भी चार प्रकार का है-अछेद्य परमाणु उसका छेदन किया नहीं जा सकता है। वह अभेद्य है, उसका भेदन नहीं किया जा सकता है। वह अदाह्य है, परमाणु को जलाया नहीं जा सकता है। चैथी बात है-अग्राह्य उसको हाथ में लेकर नहीं दिखाया जा सकता। ये चार विशेषताएँ द्रव्य परमाणु की होती हैं। परमाणु और आत्मा में समानता है। आत्मा भी अछेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य है। प्रश्न किया गया है-क्षेत्र परमाणु क्या है, कितने प्रकार का है। आकाश का एक-एक प्रदेश अपने आपमें क्षेत्र परमाणु है। इसके चार स्वरूप-विशेषताएँ हैं-अनर्ध, अमध्य, अप्रदेश और अविभाज्य।
प्रश्न किया गया-काल-परमाणु कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? काल-परमाणु की भी चार विशेषताएँ हैं-अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श। प्रश्न है-भाव परमाणु कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? पुद्गल की लघुतम इकाई के तो पर्याय हैं, उसके जो मूल लक्ष्य हैं, वो भाव परमाणु हैं। भाव परमाणु के चार प्रकार हैं-वर्णवान, गंधवान, रसवान और स्पर्शवान। इस पुद्गल जगत को हम काम में लेते हैं, यह हमारा बहुत उपकारी है। पुद्गल जगत के प्रति भी हम संयम का प्रयास रखें। गृहस्थ भी पुद्गलों का अनपेक्षित संग्रहण न करें। उपयोग में भी संयम रखें। ये अध्यात्म से संबंधित साधना की बात हो जाती है। पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित ग्रंथ प्रकीर्णक संचय जो समणी कुसुमप्रज्ञाजी द्वारा संपादित है, पूज्यप्रवर को लोकार्पित किया गया। समणी कुसुमप्रज्ञा जी ने इस ग्रंथ के विषय में जानकारी दी। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। इस तरह के कार्य करने में समणी कुसुमप्रज्ञा अद्वितीय हैं। अनेक क्षेत्रों में इनका विकास है। ज्ञान के क्षेत्र में अच्छा कार्य-विकास करती रहें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।