कठिनाई-विपत्ति आने पर भी धर्म को छाोड़ने का चिंतन भी नहीं आना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कठिनाई-विपत्ति आने पर भी धर्म को छाोड़ने का चिंतन भी नहीं आना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, 28 अक्टूबर, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम चैबीसवें तीर्थंकर हुए हैं। हम भगवान को नमस्कार करते हैं। लोगस्स में भी चैबीस तीर्थंकरों की अर्हत् भक्ति की गई है। लोगस्स के सात श्लोक अर्हत भक्ति के लिए प्रसिद्ध है। कई लोग तो लोगस्स की पूरी माला फेरते हैं। पूरी माला न हो तो 54 या 27 बार भी जप किया जा सकता है। तीर्थंकरों की स्तुति-भक्ति एक भक्ति योग का प्रयोग यह लोगस्स का पाठ हो जाता है। इसमें 1-1 तीर्थंकर का नाम लेकर वंदना की गई है। इसमें भगवान महावीर को वर्धमान नाम से वंदन किया गया है। इसमें 25 नाम आए हैं। सुविहिं च पुफ्फदंतं एक ही तीर्थंकर के दो नाम आए हैं।
श्लोक-रचना की विधि-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हो सकता है। दो नाम लिए गए हों। और भी कोई रहस्य साधना की दृष्टि से 25 के योग के लिए हो सकते हैं। कार्य-कारण हो सकता है। नवमें तीर्थंकर के दो नाम बताए गए हैं। पन्नमे च सुरेन्द्रे च---। श्लोक में भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है। इस श्लोक में उनकी विशेषता बताई गई है-निर्विशेष मनस्काय। जिनका मन निर्विशेष था। निर्विशेष यानी सम चित्त-मन वाले थे। वे अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों में सम रहें। कौशिक में दोनों आ गए नागराज और देवराज। देवराज ने प्रणाम किया तो भी सम रहे तो चंडकौशिक ने दंशा तो भी सम रहे। प्रभु भगवान ने मोहनीय कर्म का नाश किया और तुरंत केवलज्ञान, केवलदर्शन की प्राप्ति हो गई।
जो धर्म के तत्त्व को समझकर भी धर्म को छोड़ यदि वह आदमी भोगों में लिप्त हो जाता है मानो वह कल्पवृक्ष को उखाड़कर धतूरे का पौधा लगाता है। चिंतामणी रत्न को फैंककर काँच का टुकड़ा डिबिया में रखता है। गजराज हाथी को बेचकर गधा खरीदकर घर में लाता है। ऐसे लोग मूढ़ होते हैं। विपत्ति में भी धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। विपत्ति का कारण है कि पता नहीं किस जन्म में इस जीव ने कर्म बाँधे होंगे, उनका भुगतान तो करना होगा। विपत्ति आई है, मतलब मेरा पुराना कर्ज उतर रहा है, मैं ऋण-मुक्त हो समता-शांति से सहन करूँ, ऐसा चिंतन करना चाहिए। कठिनाई-विपत्ति आने पर भी धर्म को छाोड़ने का चिंतन भी नहीं आना चाहिए। धर्म को तो पकड़कर रखें। कठिनाई आए तो आए। साधुपन या श्रावकपन सुरक्षित बना रहे। हम अध्यत्ममय बने रहें।
आज शरद पूर्णिमा है। अरहंत तो शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के समान निर्मल होते हैं। अभातेयुप के निर्देशन में त्रिदिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन पूज्यप्रवर की सन्निधि में कल से शुरू हो गया है। इसकी थीम है-नवोदय। राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज डागा ने अभातेयुप के विकास के आयामों को बताया। अभातेयुप के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेश कुमार जी ने कहा कि यह संगठन गुरु-दृष्टि की आराधना करते हुए विकास-मार्ग पर गतिमान है। अभातेयुप का प्रतिवेदन पूज्यप्रवर को समर्पित किया गया। सुभाष रुणवाल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आज का युग टेक्नोलाॅजी का युग है। इस युग ने आज के युवक को व्यस्त बना दिया है। तेरापंथ धर्मसंघ के लिए यह गौरव का विषय है कि टेक्नोलाॅजी में व्यस्त रहते हुए भी हमारे युवक अध्यात्म के बारे में चिंतन कर रहे हैं। अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के जागरण के बारे में चिंतन करते हुए आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। तपोयज्ञ कर रहे हैं। इनके भीतर धर्म और अध्यात्म का बीज है, वे उसके द्वारा अनेक आयामों से समाज का विकास कर रहे हैं।
पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि धर्म की कला के सामने सब कलाएँ फीकी हैं। विवेक ने कर्मणा जैन की बात कही तो जीवन में अहिंसा-संयम आए। रुणवाल ने भी बात बताई। अभातेयुप के अधिवेशन का समय है। युवक और किशोर इससे जुड़े हैं। इनके द्वारा अनेक गतिविधियाँ आध्यात्मिक व समाज सेवा के लिए चल रही हैं। आगे और विकास करता रहे। सिने स्टार विवेक ओबराॅय भी श्रीचरणों में उपस्थित हुए। उन्होंने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए कहा कि मैं भी कर्मणा जैन हूँ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।