जो उपलब्ध है उसका त्याग करना सच्चा त्याग: आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यप्रवर के पावन सान्निध्य में आयोजित हुआ पारमार्थिक शिक्षण संस्था का प्रथम अधिवेशन
नंदनवन, 5 नवंबर, 2023
जन-जन के तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना व पावन आशीर्वाद की कृपा करते हुए फरमाया कि अर्हत् वाङ्मय में एक दशवेंकालिक आगम है, जो चारित्रात्माओं से बहुत परिचित है। कई चारित्रात्माएँ इसे पूर्णतया या अंश रूप में याद करते हैं।
उसमें बताया गया है कि त्यागी कौन होता है? अभाव और विवशता में जो भोग सेवन नहीं कर सकता वह त्यागी नहीं हो सकता। जो उपलब्ध हैµकांत-प्रिय उपभोग उनको जो पीठ फेरकर छोड़ देता है, भीतर से विरक्ति हो जाती है, वह व्यक्ति त्यागी बन सकता है। आदमी के जीवन में वह समय भी कितना महत्त्वपूर्ण होता है जब वह सर्वविरति रूप त्याग कोµचारित्र को स्वीकार कर लेता है। अनंतकाल की यात्रा में भी वे समय धन्य है, जो समय चारित्र पालन में व्यतीत होता है।
आचार्य भिक्षु ने जब से भाव दीक्षा ग्रहण की थी, तब से हमारा ये धर्मसंघ शुरू हुआ था। आचार्य भिक्षु स्वयं परखकर दीक्षा देने वाले थे। प्रायः दीक्षाएँ परम पूजनीय आचार्यों द्वारा संपन्न हुए हैं, तो अनेक-अनेक मुमुक्षु साधु-साध्वियों द्वारा भी दीक्षित हुए हैं।
दीक्षा बहुत बड़ी चीज है, उसके लिए तैयारी भी अच्छी हो। पूज्य आचार्य तुलसी के समय यह चिंतन पुष्ट हुआ कि दीक्षा से पहले शिक्षा हो। साथ में परीक्षा भी हो। समीक्षा भी हो। इस शिक्षा के इर्द-गिर्द सूई घुमी होगी तो इस पारमार्थिक शिक्षण संस्था ने मजबूती को प्राप्त किया। एक महनीय संस्था आचार्यश्री तुलसी की निश्रा में प्रारंभ हुई। वि0सं0 2005 फाल्गुन शुक्ला द्वितीया को। आज वह संस्था अपने पचहतरवें वर्ष में चल रही है।
इस संस्था में बहुलांश भाग तो बाईयों का होता है, पर एक अंश पुरुषों का भी होता है। मुमुक्षु बाईयाँ उच्च श्रेणी से शिक्षित हो रही हैं। शिक्षण युक्त दीक्षाएँ ज्यादा समीचीन हो सकती है। एक फाउंडेशन का अच्छा क्रम बन सकता है। पा0शि0 संस्था भले ज्यादा गरजे नहीं पर काम अच्छा ट्रेनिंग का चल रहा है। परमार्थ की शिक्षा का महत्त्व है। अनेक कार्यकर्ताओं ने समय लगाया है, वर्तमान में भी लगा रहे हैं।
मुमुक्षु बहनों के शिक्षण में समणियों का बड़ा संयोग रहता है। यह संस्था अलग तरह की है, इसकी अलग व्यवस्था होती है। आज अधिवेशन शुरू हुआ है। यहाँ साधना के संस्कार चलते रहें। मैंने भी संस्था में प्रवेश तो नहीं किया पर दीक्षा के बाद संस्था में प्रवास किया था। एक अध्यापक के तौर पर उनके भवन में जाकर पढ़ाता था। इस संस्था का विकास हुआ है। श्रावक भी इनकी व्यवस्था देखते हैं। मुमुक्षु बहनें तेरापंथ समाज की बेटियाँ हैं, समाज भी इनका ध्यान रखे।
पचहतरवें वर्ष में पहला अधिवेशन आज शुरू हुआ है। अधिवेशन विकास की प्रेरणा वाला बने। संस्था व गुणवत्ता बढ़ती रहे। मुमुक्षु बहनें भावी साध्वियाँ हैं। इनका अच्छा निर्माण होता रहे। मुमुक्षु भाई भी अच्छा शिक्षण प्राप्त करते रहें। अमृतायन का स्थान भी संख्या की दृष्टि से कम पड़े ऐसी अनुप्रेक्षा है।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि देश में अनेक शिक्षण संस्थाएँ चलती हैं किंतु पा0शि0 संस्था का उद्देश्य परमार्थ है, इसलिए यह विशेष संस्था है। यहाँ शिक्षा प्राप्त करने वाले मुमुक्षु कहलाते हैं। मुमुक्षु वह होता है, जो शम की साधना करता है। कषायमंदता की साधना करते हुए ऋजुता की ओर आगे बढ़ता है। मुमुक्षु में संवेग भाव निर्वेद की साधना होती है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हम संस्था के अतीत को देखें तो संख्या उत्तरोत्तर विकास कर रही है। संसार से उन्मुख होने वाला मुमुक्षु वर्ग है। मुमुक्षु टेक्नोलाॅजी के युग से निकलकर अध्यात्म के मार्ग पर आगे बढ़ रही है। जिज्ञासा, विभूषा और जिज्ञीर्षा से ये आगे बढ़ रही है। यहाँ आकर व्यक्ति निश्चिंतता का अनुभव करता है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि आत्मा का सुख समाधि है। इस समाधि को प्राप्त करने के चार उपाय हैंµविनय, श्रुत, तप और साधना। इसकी तुलना डिफेंस अकादमी से की जा सकती है। मुमुक्षु स्वयं अपनी आत्मा से लड़ती है। मुमुक्षुओं की संख्या वृद्धि होती रहे।
व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ (जो पा0शि0 संस्था के मंत्री हैं) संस्थाध्यक्ष बजरंग जैन ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुमुक्षु बहनों ने गीत की प्रस्तुति दी। समणी ऋजुप्रज्ञा जी, मुमुक्षु मानवी, मुमुक्षु भाविका ने गत पाँच वर्षों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। संस्था के पदाधिकारियों ने संस्था की पत्रिका ‘अरुणिमा’ पूज्यप्रवर को समर्पित की। डोक्यूमेंटरी द्वारा संस्था के विकास को बताया गया।
समणी नियोजिका अमलप्रज्ञा जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।