मोक्ष प्राप्ति हो जीवन जीने का परम लक्ष्य : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 1 नवंबर, 2023
तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि हमारी इस लोकाकाश की स्थिति में या सृष्टि में चार प्रकार के संसारी प्राणी हैं और एक सिद्ध है। जीवों के दो प्रकार हो जाते हैं-सिद्ध और संसारी। सिद्ध जीव जन्म-मरण की परंपरा से विप्रमुक्त होते हैं। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। आत्मा को अमर और अरूपी कहा गया है। यथाख्यात बात आत्मा के संदर्भ में सिद्धों पर बिलकुल लागू होती है। सिद्धों की आत्मा अमूर्त-अरूपी है। जैन दर्शन में अनेक सिद्धांत हैं उनमें एक सिद्धांत यह आत्मवाद है। पूर्णतया शुद्ध अमूर्त रूप केवली या चैदहवें गुणस्थान वाले के नहीं होता है। अन्य संसारी आत्माएँ विशुद्ध स्वरूप वाली नहीं होती है। चार गतियों में संसारी जीव विभक्त है। चारों गतियों से छुटकारा हो जाए वो मोक्ष की स्थिति होती है। आत्मा समस्त कर्म क्षय कर अपने विशुद्ध स्वरूप में अवस्थित हो जाती है, वह अवस्था मोक्ष है।
जीवन जीने का परम लक्ष्य बनाना चाहिए-मोक्ष की प्राप्ति। पूर्व कर्मों को क्षय करने के लिए इस शरीर को धारण करें। दुःख मुक्ति की साधना इस मनुष्य जन्म से करें, यह मनुष्य जन्म की सार्थकता होती है। मोक्ष शाश्वत दुःख मुक्ति की साधना है। आत्मा चार गति-चैरासी लाख जीव योनियों में भ्रमण करती रहती है। जैन शासन में त्याग-तपस्या की सूक्ष्म चर्या बताई गई है। वर्तमान में साधु पाँच महाव्रती होते हैं। भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी कार्तिक मास में आ रहा है। भगवान महावीर की 2500वीं निर्वाण शताब्दी पर एक ग्रंथ तैयार हुआ था-समण सूतं। जो जैन शासन सम्मत था। एक प्रतीक और एक ध्वज भी सम्मत हुआ था।
जैन समाज में अनेकता में भी एकता है। जैन शासन की एकता नवकार महामंत्र, भक्तामर और तत्त्वार्थ सूत्र में देखी जा सकती है। भगवान महावीर सभी के आराध्य हैं। सामने 2550वाँ निर्वाण दिवस आ रहा है। जैन शासन में अहिंसा, संयम, तप, आत्मवाद, कर्मवाद की बात है। दिगंबर-श्वेतांबर आगमों में काफी समानता है। श्वेतांबरों में भी कुछ भिन्नताएँ हैं। सबमें मैत्रीपूर्ण व्यवहार बना रहे। अध्यात्म की साधना अच्छी चलती रहे। जैन शासन में चार तीर्थ हैं। तीर्थ करने वाले तीर्थंकर होते हैं। चारों तीर्थ साधना में आगे बढ़ने का प्रयास करते रहें। गृहस्थों के परिवारों में अच्छे संस्कार रहें।
हम सबकी अहिंसायुक्त जीवनशैली रहे। अनेकांतवाद-स्याद्वाद भी जैन शासन का सिद्धांत है। वांट और नीड पर ध्यान दें। इच्छाओं का सीमाकरण हो। भोगोपभोग की भी सीमा हो। जैन शासन के सिद्धांतों के अनुरूप जीवनशैली हो। जैन विश्वभारती द्वारा संघ सेवा पुरस्कार समारोह का आयोजन पूज्यप्रवर की सन्निधि में शुरू हुआ। सलिल लोढ़ा ने इसके बारे में समझाया। जैविभा द्वारा अनेक सेवा के आयाम गतिमान हैं। नेमचंद जेसराज सेखानी द्वारा संचालित पाना देवी सेखानी की स्मृति में संघ सेवा पुरस्कार प्रदान किया जाता है। वर्ष 2020 का पुरस्कार ख्यालीलाल तातेड़, 2021 का पुरस्कार किशनलाल डागलिया को प्रदान किया गया। सेखानी परिवार से सरिता सेखानी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। शतायु जेसराज सेखानी की भी गरिमापूर्ण उपस्थिति रही।
दोनों पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं का परिचय दिया गया। ख्यालीलाल तातेड़ एवं किशनलाल डागलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। मुंबई की चारों संप्रदाय की महिला मंडल की बहनें पूज्यप्रवर की पावन सन्निधि में पहुँची। तरुणा बोहरा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। बहनों द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी एवं साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी का भी मंगल उद्बोधन हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।