रचनाएं
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी के 32वें दीक्षा दिवस पर वर्धापना गीत
संघ क्षितिज पर मेघ धनुष यह नवरंगा उभरा है।
साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी का जीवन निखरा है।।
साध्वी समुदय हरा-हरा है, गीतों से मन भरा-भरा है।।
चंदेरी की कीर्ति कौमुदी, मोदी कुल की ज्योती,
महाप्राण की जन्म धरा पर निपजा उजला मोती।
लाडसती और कनकप्रभाजी, की अभिराम धरा है।।
(तेरापथ की राजधानी वह सचमुच वसुंधरा है।।)
प्रतिभा और प्रबंधन पटुता की नैसर्गिक क्षमता,
अनुशासन में भी अपनापन व्यवहारों में मृदुता।
लहरों-सा उत्साही मानस, श्रुत वैभव गहरा है।।
ध्यान योग, स्वाध्याय योग का तपोयोग का संगम,
साम्य योग है सधा हुआ, प्रेरक नियमित जीवन क्रम।
अपने पर अपना अनुशासन का प्रतिपल पहरा है।।
योगीश्वर श्री महाप्रज्ञ की कृपा अनन्या पाई,
महाश्रमण ने दी साध्वीप्रमुखा पद की ऊँचाई।
गुरु करुणा से युग अनुरूप मिली साध्वी प्रवरा है।।
स्वर्णिम हो हर प्रात आपका, रजतमयी हर रजनी,
जीओ वर्ष हजारों, स्वस्थ रहो, दो कृतियाँ वजनी।
वर्धापन करने नभ से कोई ज्योतिपुंज उतरा है।।
युगप्रधान की सन्निधि, नंदनवन की सुषमा न्यारी,
अंतरंग परिषद की आभा है अतिशय मनहारी।
परितः प्रतिभा पारिजात का पुण्यपुंज बिखरा है।।
लय: मांय न मांय न---