तपस्या भौतिक लाभ या यश कीर्ति के लिए नहीं बल्कि आत्म शुद्धि के लिए होनी चाहिए
उधना।
मुनि उदित कुमार जी के सान्निध्य में तेरापंथी सभा, उधना के तत्त्वावधान में तेरापंथ भवन, उधना में तप अभिनंदन समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें अठाई से लेकर मासखमण तप की तपस्या करने वाले तपस्वियों का बहुमान किया गया। इस अवसर पर मुनि उदित कुमार जी ने कहा कि जैन परंपरा में तपस्या का विशेष महत्त्व है। वर्तमान भव ही नहीं पूर्व भव के भी संचित कर्मों की निर्जरा करने का अमोघ साधन हैµतपस्या। तपस्या करने वाला, तपस्या में सहयोगी बनने वाला एवं तपस्या की अनुमोदना करने वाला भी कर्मों की निर्जरा करता है। तपस्या से भौतिक लाभ हो जाए यह अलग बात है, लेकिन तपस्या भौतिक लाभ के उद्देश्य से नहीं होनी चाहिए। तपस्या के पीछे यश, प्रतिष्ठा या कीर्ति प्राप्त करने का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। तपस्या तो केवल और केवल आत्म शुद्धि के लिए होनी चाहिए। उसके पीछे मात्र कर्म निर्जरा का ही उद्देश्य होना चाहिए।
मुनि अनंत कुमार जी ने अपने उद्बोधन में आत्मा के ऊध्र्वारोहण के लिए तपस्या को प्रमुख साधन बताया। उन्होंने एवं मुनि रम्यकुमार जी ने नवरात्रि अनुष्ठान के अंतर्गत जप के प्रयोग भी करवाया। तेरापंथी सभा, उधना के अध्यक्ष बसंतीलाल नाहर ने स्वागत वक्तव्य में सभी तपस्वियों की त्याग भावना की अनुमोदना की एवं तप अभिनंदन गीत का संगान किया। आभार ज्ञापन विनोद भटेवरा ने किया। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथी सभा, उधना के उपाध्यक्ष मुकेश बाबेल ने किया।