माटी के दीप जलें न जलें पर भीतर के दीप जलें

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माटी के दीप जलें न जलें पर भीतर के दीप जलें

नोखा।
दीपावली पर्व ज्योत्सना, उज्ज्वलता का प्रतीक है। सभी लोग खुशियाँ मनाते हैं। दीप जलाकर ज्योति करते हैं, किंतु मन की मलिनता मिटे। कहा भी है-‘माटी के दीप जले न जलें, परंतु भीतर के दीप जलें’। अंदर मलिनता न रहे। मन साफ, स्वच्छ रहे। तब आत्मा का कल्याण होगा। भगवान महावीर आज के दिन निर्वाण पधारे, मुक्त हुए। भगवान राम भी अयोध्या पधारे-यह उद्गार शासनश्री साध्वी राजीमती जी ने दीपावली पर्व पर रखे।
भगवान महावीर के जन्म से निर्वाण तक की चित्रमय जीवन-झाँकी द्वारा साध्वी प्रभातप्रभाजी ने मार्मिक ढंग से समझाया। साध्वी कुसुमप्रभ जी, साध्वी पुलकितयशा जी ने दीपावली पर्व की सार्थकता बताते हुए प्रेम, मैत्री, करुणा, दया, सेवा भावना उत्तरोत्तर प्रवर्धमान रहे, प्रेरणा दी। सभा उपाध्यक्ष इंदरचंद बैद ने बताया कि सभा में भगवान महावीर का जाप व तपस्याएँ हुई।