संस्कारों को सुदृढ़ करने का विशिष्ट उपक्रम है ज्ञानशाला

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संस्कारों को सुदृढ़ करने का विशिष्ट उपक्रम है ज्ञानशाला

उधना।
मुनि उदित कुमार जी के सान्निध्य में तेरापंथ भवन, उधना में तेरापंथ महासभा द्वारा संचालित ज्ञानशालाओं के आंचलिक संयोजक एवं सह-संयोजक का दिवसीय सम्मेलन प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर मुनि उदित कुमार जी ने कहा कि आध्यात्मिक क्षेत्र में तेरापंथ की अनेक संस्थाएँ कार्यरत हैं। अनेक प्रकार के उपक्रम संचालित हो रहे हैं। उसमें दो उपक्रम अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैंµउपासक श्रेणी और ज्ञानशाला। उपासक श्रेणी के उपासक मुख्य रूप से पर्युषण आराधना करवाने हेतु ऐसे क्षेत्रों में जाते हैं जहाँ धर्मसंघ के साधु-साध्वी पहुँच नहीं पाते। ज्ञानशाला का उपक्रम एक ऐसा उपक्रम है जो 12 महीनों तक चलता रहता है। देश भर में लगभग 570 ज्ञानशालाएँ चल रही हैं एवं उसमें लगभग 5000 प्रशिक्षिकाएँ अपनी सेवाएँ दे रही हैं।
मुनिश्री ने आगे कहा कि ज्ञानशाला बच्चों की निर्माण साला है। इसके द्वारा बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण किया जाता है। इतना ही नहीं उनके आध्यात्मिक संस्कारों को सुदृढ़ बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाएँ बालकों को नियमित प्रशिक्षण देती हैं। विशेष कार्यक्रमों के लिए ट्रेनिंग भी देती हैं और भावी प्रवृत्तियों का आयोजन भी करती हैं। ज्ञानशाला ऐसा उपक्रम है जिसके द्वारा भविष्य में अच्छे श्रावकों की सुंदर पीढ़ी तैयार की जा सकती है।
ज्ञानशाला के राष्ट्रीय शिविर प्राध्यापक डालिमचंद नौलखा ने कहा कि भगवान महावीर ने मुक्ति के चार मार्ग बताए हैंµज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप। इनमें प्रथम स्थान है ज्ञान का। ज्ञान शून्य जीवन का कोई मूल्य नहीं है। ज्ञानशाला बाल्यावस्था से ही यथार्थ का ज्ञान देने वला उपक्रम है। ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक सोहन चोपड़ा ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। उपासक प्राध्यापक निर्मल नौलखा ने उपयोगी मार्गदर्शन दिया। ज्ञानशाला के गुजरात के संयोजक प्रवीण मेड़तवाल उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन तेरापंथी सभा के मंत्री सुरेश चपलोत ने किया।