सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् दर्शन और सम्यक् आचार भी हो : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 7 नवंबर, 2023
जिनवाणी के उद्गाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन शासन की श्वेतांबर तेरापंथ परंपरा में आगमों का उच्च स्थान है। हमारे यहाँ बत्तीस आगमों की मान्यता है। ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार मूल, चार छेद और एक आवश्यक। वैसे अंग बारह होते हैं, इसलिए द्वादशांगी कहा गया है। यहाँ प्रश्न किया गया है कि गणि-पिटक कितने प्रकार के होते हैं। गणि-पिटक आचार्य-साधु की मंजुषा होते हैं। जितना गृहस्थों के लिए धन की तिजोरी का महत्त्व है, वैसे ही आचार्य के लिए आगम का महत्त्व है। आगम आचार्य की संपदा है। आचार या तत्त्व संबंधी निर्णय करने के लिए आचार्य आगमों का अध्ययन करके देखते हैं कि उक्त संदर्भ में क्या लिखा है।
ग्रंथ तो अपने आपमें पुद्गल है, पर इनसे जो ज्ञान-गृहीत होता है, वह एक बड़ी संपत्ति है। इस ज्ञान-संपत्ति को कोई चुरा नहीं सकता। यह तो भाव-मंजुषा है। श्रुत संपदा भाव श्रुत के निमित्त बनते हैं। तीर्थंकर तो आगम-पुरुष होते हैं। गणि-पिटक बारह अंगों वाला है, उसमें पहला अंग-आचार है। आचारंग या आयारो भी इसे कहते हैं। इसमें साधु के आचार संबंधी अनेक बातों का उल्लेख मिलता है। ज्ञान करने से आचार की प्रेरणा मिलती है। ज्ञान का सार आचार है। ज्ञान आचारण में आए। नाणस्य सार, मायारो। इसके दो प्रकार हैं-आयारो और आयर चूला।
ज्ञान का महत्त्व तभी है, जब वह आचरण में आए। जिससे साधु राग से विराग में बढ़े, जिससे आदमी श्रेयों-कल्याणों में आगे बढ़े, जिससे मैत्री भावना की चेतना भावित हो जाए जिस शासन में वह ज्ञान है, धर्म-अध्यात्म विद्या का ज्ञान होता है। जिसके द्वारा तत्त्व का बोध हो वह अपने आपमें ज्ञान होता है। सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् दर्शन और सम्यक् आचार भी हो। आचार का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है, उसके लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। आयारो श्रुत स्कंध की टीका भी है, चूर्णि भी है और हमारे धर्मसंघ में आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा संस्कृत भाषा में भाष्य भी लिखा गया है। उसका हिंदी व अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ है। गुरुदेव तुलसी के समय यह कार्य शुरू हुआ था और संपन्न भी हो गया था।
हम जीवन में ज्ञान का सार निकालने की चेष्टा करें। हम जीवन में आचार को भी स्थान देने का सम्यक् पालन करने का प्रयास करें। यह प्रयास हमारे लिए श्रेयस्कर हो सकता है। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘फाउंटेन आफ अमृत’-साध्वी अणिमाश्री जी और समणी ज्योतिप्रज्ञा जी द्वारा लिखित ‘वनस्पतिकाय-एक परिशीमन’ पूज्यप्रवर को लोकार्पण हेतु समर्पित किए गए। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। अहमदाबाद कांकरिया-मणिनगर क्षेत्र में विराजित शासनश्री साध्वी रामकुमारी जी, सरदारशहर का आज 80वाँ दीक्षा दिवस है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।