ज्ञान और आचार के मध्य सेतु का कार्य करते हैं संस्कार : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 19 नवंबर, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि आदमी के जीवन में ज्ञान और चरित्र इन दोनों का बड़ा महत्त्व होता है। ज्ञानविहीन आचार और आचारविहीन ज्ञान है, तो भी बड़ी कमी हो सकती है। अज्ञान एक प्रकार का कष्ट है। अज्ञानी आदमी जान नहीं पाता कि क्या मेरे लिए भला है, क्या करणीय, अकरणीय है। ज्ञान का सार हैµआचार। भगवती सूत्र में यहाँ चरित्र विनय बताया गया है, जो पाँच प्रकार का हैµसामायिक चरित्र, छेदोपस्थापनीय परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म संपराय और यथाख्यात चारित्र। ये साधु के चारित्र हैं।
साधु का तो चरित्र विनय बहुत उज्ज्वल होता है, तारतम्य हो सकता है। गृहस्थों के संदर्भ में हम संयम का व्याख्यात करें। आदमी का आचरण अच्छा हो। अणुव्रत आचरण को अच्छा बनाने वाला है। विचार अच्छे बनें। गृहस्थों में सद्विचार और सदाचार दोनों आ जाएँ साथ में संस्कार भी अच्छे हों।
जीवन विज्ञान भी अच्छा उपक्रम है, जो अणुविभा के अंतर्गत है। जीवन विज्ञान से भी अच्छे संस्कार आ सकते हैं। यह एक प्रसंग से समझाया कि ज्ञान के साथ आचरण का भी महत्त्व है। अणुव्रत नैतिकता का संदेश देने वाला है। अहिंसा, नैतिकता, ड्रग्स निवारण आदि चारित्र उत्थान के कार्य अणुव्रत करता है। अणुव्रत-संयम का प्रचार-प्रसार होता रहे। जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित पुणभववाओ जो साध्वी विमलप्रज्ञा जी ने गुरुदेव के निर्देशानुसार संपादित किया है, पूज्यप्रवर को लोकार्पित किया गया। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के समय यह चिंतन चला था कि आगमों से एक-एक विषय की जानकारी एक जगह आ जाए। एक ग्रंथ पहले आयावाओ तो आ चुका है। पुनर्जन्म के बारे में आज यह पुणब्भववाओ सामने आया है। मूल पाठ के साथ अर्थ-टिप्पण भी है। आज साध्वीश्रीजी का दीक्षा दिवस भी है। जैन विश्व भारती के पास ज्ञान का भंडार है। ग्रंथों का खजाना विशिष्ट है। इस खजाने का जितना हो सके लाभ उठाने का प्रयास करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी ने मनुष्य का नैतिक निर्माण करने के लिए अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात किया। उन्होंने कहा थाµपहले इंसार इंसान, फिर हिंदु या मुसलमान। अणुव्रत के लिए उन्होंने सघन प्रयास किया था। अणुव्रत मानव निर्माण का एक कारखाना है। कोई जैन बने या न बने पर गुडमैन बने। गुरुदेव तुलसी की यात्राओं के अनेक प्रसंग समझाए। शासनश्री साध्वी विमलप्रज्ञा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। आज के दिन 49 वर्ष पूर्व सात दीक्षाएँ हुई थीं। उनमें से मुनि मोहजीत कुमार जी भी इस बार केंद्र में हैं। जेएसएस, मैसूर के लगभग 50 विद्यार्थी पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ आए हैं। बच्चों ने अणुव्रत गीत का सुमधुर संगान किया। 31 आगमों का सेट लगभग 500 जैनाचार्यों, पुस्तकालयों को जैन विश्व भारती द्वारा प्रदत्त किया जाएगा। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया।
डाॅ0 सोहनलाल गांधी द्वारा संपादित अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का विद्यानों की दृष्टि में क्या महत्त्व है उस पर एक पुस्तक ळसवइसम त्मके पूज्यप्रवर को लोकार्पित की गई। तेजराज ने इस पुस्तक के संदर्भ में अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि आचार्यश्री का अपना व्यक्तित्व था। अनेक प्रतिष्ठित चिंतन उनके संपर्क में आए थे। डाॅ0 सोहनलाल गांधी ने भी अच्छा कार्य विश्व स्तर पर किया है। वे भी खूब सेवा देते रहें।
संस्था शिरोमणी जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष मनसुख सेठिया ने पनवेल मुंबई में तेरापंथ विश्व भारती के लिए स्थान खरीद के बारे में पूरी जानकारी दी। व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।