ग्रंथों के स्वाध्याय से मिलती है अच्छी शिक्षा और प्रेरणा : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 21 नवंबर, 2023
सत्य महापुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आर्ष वाणी का रसास्वादन करवाते हुए फरमाया कि तप के छः आभ्यंतर तपों में एक हैµस्वाध्याय। स्वाध्याय शब्द पर मीमांसा करें स्वाध्याय कैसे बन सकता है। संधि-विच्छेद करें तो स्व$अध्याय यानी अपना अध्ययन करना यह स्वाध्याय हो जाता है। दूसरे रूप में शब्द को तोड़ें तो सु-आ-अध्याय यानी सर्वांगीण अध्ययन करना स्वाध्याय है। संधि-विच्छेद, समास के संदर्भ में एक शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं। श्रुत-ज्ञान प्राप्ति का प्रयास स्वाध्याय होता है, वो पाँच रूपों में हो सकता है। वाचना, यानी शिष्यों को पढ़ाना। यह भी एक सेवा का उपक्रम है, पर पढ़ाने से पहले स्वयं को ज्ञान होना चाहिए। पढ़ाने से स्वयं का ज्ञान पुष्ट हो सकता है। गुरुदेव तुलसी ने कितने ग्रंथों का अध्ययन किया था और वे पढ़ाते भी थे।
स्वाध्याय का दूसरा प्रकार हैµपृच्छना-प्रश्न पूछना। आदमी पूछते-पूछते कभी मोक्ष तक पहुँच सकता है। तीसरा प्रकार हैµपरिवर्तना-चितारना ताकि ज्ञान मजबूत रहेगा कंठस्थ ज्ञान। चैथा प्रकार हैµअनुप्रेक्षा-ज्ञान पर मनन करना। ताकि नई बात समझ में आ सकती है। पाँचवाँ प्रकार हैµधर्मकथा-प्रवचन करो। अच्छा वक्ता बनने के लिए गुरुओं को, प्रबुद्ध व्यक्तियों को सुनते रहना चाहिए।
पुस्तकें कुछ अंशों में शिक्षक और मित्र का पार्ट अदा कर सकती हैं। इसलिए हमें अच्छी पुस्तकों का स्वाध्याय करना चाहिए। ग्रंथों के स्वाध्याय से अच्छी शिक्षा और प्रेरणाएँ मिल सकती हैं। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि दानों में सर्वश्रेष्ठ दान अभयदान है। जो स्वयं अभयी है, वही दूसरों को अभयदान दे सकता है। अभयी को किसी का भय नहीं रहता है। भय मोहनीय कर्म का एक सदस्य है। कषाय के कंधे पर बैठकर भय अपना जीवन चला रहा है। जहाँ क्रोध, अहंकार, माया और लोभ या मूच्र्छा होती है, वहाँ भय होता है। हममें पापभीरूता हो। जो व्यक्ति अप्रमत्त है, उसे कहीं भय नहीं है।
पूज्यप्रवर की पावन सन्निधि में जैन विश्व भारती द्वारा प्रज्ञा पुरस्कार समारोह की आयोजना हुई। 2023 का पुरस्कार राजकुमार नाहटा, सरदारशहर-दिल्ली को प्रदान किया। राजकुमार नाहटा का परिचय दिया गया। प्रायोजक परिवार से प्रताप दुगड़ व राजकुमार नाहटा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। कैंसर रोग के विशेषज्ञ डाॅ0 राजेश कुंडलिया ने नशामुक्ति एवं कैंसर रोग मुक्ति के बारे में विस्तार से समझाया। उसके कारण और निवारण के उपाय बताए। जैन जीवन शैली को जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी। सुमतिचंद गोठी ने भी अपनी भावना रखी। जैन विश्व भारती ओरलैंडो की 25 वर्ष की रिपोर्ट वहाँ के चेयरमैन देवांग भाई व तुषार भाई ने पूज्यप्रवर को समर्पित की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।