तेरापंथ धर्मसंघ के विशिष्टतम आचार्य थे गुरुदेव तुलसी: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

तेरापंथ धर्मसंघ के विशिष्टतम आचार्य थे गुरुदेव तुलसी: आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री तुलसी का 110वें जन्मोत्सव ‘अणुव्रत दिवस’ का आयोजन

नंदनवन, 15 नवंबर, 2023
कार्तिक शुक्ला द्वितीया-भाई दूज एवं गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी का 110वाँ जन्म दिवस। आज के दिन खटेड़ कुल में माँ वंदनाजी की कुक्षि से लाडनूं में एक हीरा जन्मा था जो आगे चलकर जन-जन के गले का हार बन गया। तेरापंथ धर्मसंघ का नवमाधिशास्ता बन गया। गुरुदेव तुलसी ने जन-जन के कल्याण हेतु अणुव्रत आंदोलन शुरू किया था, इसलिए आज के दिन को अणुव्रत दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। गुरुदेव तुलसी के परंपर पट्टधर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की विवेचना करते हुए फरमाया कि बाह्य तप के छः प्रकारों में पाँचवाँ प्रकार कायक्लेश। शरीर को विवाधित करना, कष्ट को सहन करना, शरीर की प्रतिकूलता को सहन कर लेना, कायोत्सर्ग आदि आसन करना कायक्लेश हो जाता है।
एक आसन में लंबे काल तक बैठना साधना हो जाती है। ध्यान के प्रयोग में भी लंबे काल तक एक आसन में बैठना होता है। काय-क्लेश के अनेक प्रकार हो जाते हैं। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के जीवन में भी काय-क्लेश का दर्शन होता है। मुझे भी उनके निकट रहने का अवसर मिला था। गुरुदेव कई आसन-व्यायाम किया करते थे। शरीर से परिश्रम भी किया करते थे। अनेकों लंबी यात्राएँ भी की थीं। पूरे भारत में प्रायः भ्रमण हुआ था।
आचार्य तुलसी का तत्त्वज्ञान भी था। चारित्र मोहनीय का क्षयोपशम पहले से दसवें गुणस्थान के जीवों में ही होता है। गुरुदेव तुलसी का भी चारित्र मोहनीय का क्षयोपशम हुआ और वे पूज्य कालूगणी के पास दीक्षित हो गए। खटेड़ परिवार का तेरापंथ को अवदान है। आचार्य तुलसी बाला अवस्था में भी मेधावी थे। स्वयं शिक्षित हुए और अनेकों को शिक्षित कर दिया। 22 वर्ष की अवस्था में तेरापंथ के आचार्य बन गए थे तो आचार्य पद का विसर्जन भी किया था। दोनों घटनाएँ अद्वितीय थी। आचार्य तुलसी ने अनेक नए-नए आयाम दिए। अनेक संस्थाएँ भी उनके समय में उद्भुत हुई थी। समण श्रेणी का भी आज के दिन तयांलीस वर्ष पूर्व जन्म हुआ था। आज भी विदेश में समणियों के प्रति आकर्षण है। समण श्रेणी अनेक रूपों में विकास करती रहें। साधना के साथ ज्ञान का विकास हो। उपयोगी-कार्यकारी हमारी समण श्रेणी है। विकास में अवकाश तो है ही।
अणुव्रत आंदोलन गुरुदेव तुलसी की ही देन है। अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष भी चल रहा है। अणुविभा के कार्यकर्ता अच्छा कार्य कर रहे हैं। नशामुक्ति का अच्छा कार्यक्रम कर रहे हैं। अणुव्रत के विकास में भी यथाचैत्य प्रयास होता रहे। अणुव्रत एक कल्याणकारी कार्यक्रम है। आचार्य तुलसी जन्म दिवस, समण श्रेणी दिवस और अणुव्रत दिवस तीन कार्यक्रम हो गए। उनके शासनकाल में अनेकों को रहने का शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ने का अवसर मिला था। उनकी आत्मकथा ‘मेरा जीवन मेरा दर्शन’ को भी हम पढ़ें। उनके जीवन शैली के सूत्रों को अपने जीवन में लाने का प्रयास करते रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जितनी वाणी आज भी कानों में प्रतिध्वनित हो रही है, जिनका बिंब आज भी आँखों में प्रतिबिंबित हो रहा है। जिनका वातावरण मन को आह्लादित कर रहा है, जिनका चिंतन मन को पोषण दे रहा है, उस युग पुरुष की आज हम जन्म जयंती मना रहे हैं। आचार्यश्री तुलसी की जीवन गाथा भारतीय संस्कृति का नया उन्मेष है। उनका व्यापक जन-संपर्क व साहित्य सृजन आश्चर्य पैदा करने वाला है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि जो स्वयं ज्ञान संपन्न होते हैं, वे दूसरों का निस्वार्थ निर्माण करते हैं। गुरुदेव तुलसी ने अपने जीवन में अनेक व्यक्तियों का निर्माण किया। जो बड़ा कठिन कार्य होता है। उनका व्यक्तित्व उभयानुन्मुखी था। उन्होंने लोगों में सत्-संस्कार का निर्माण किया। सत्-संस्कारों से जीवन की जड़ें मजबूत होती हैं। गुरुदेव तुलसी की अंतिम साहित्य कृत श्रावक संबोध का अंग्रेजी भाषा का संस्करण जो साध्वी उन्नतप्रभा जी द्वारा संकल्पित किया गया है, जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित है, वो पूज्यप्रवर को लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया।
मुंबई की अनेक ज्ञानशालाओं के ज्ञानार्थी पूज्यप्रवर की सन्निधि दर्शनार्थ पहुँचे हैं। अणुविभा के निर्देशन में अणुव्रत की बात प्रस्तुत की गई। अणुव्रत के प्रकल्पों को एक नाटिका से बताया गया। पूज्यप्रवर ने भी आशीर्वचन फरमाया एवं प्रेरणाएँ प्रदान की। अणुविभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविनाश नाहर एवं ज्ञानशाला से डाॅ0 नीलम जैन, दीपक डागलिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
गुरुदेव तुलसी के खटेड़ परिवार की बहनों ने गीत, छत्रसिंह खटेड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। समणी नियोजिका, समणी अमलप्रज्ञा जी ने भी अपनी भावना रखी। समणीवृंद ने समूह गीत की प्रस्तुति दी। पारमार्थिक शिक्षण संस्था की बहनों ने भी गीत की प्रस्तुति दी। शासनश्री साध्वी चांदकुमारी जी ने पारिवारिकजन पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पहुँचे। पूज्यप्रवर ने साध्वीश्री जी के बारे में फरमाया। महेंद्र गोलछा ने उनके बारे में अपनी भावना अभिव्यक्त की। गोलछा परिवार से तेरह साधु-साध्वियाँ हैं। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।