भौतिक हो या आध्यात्मिक, सेवा में सदैव रहें तत्पर : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 20 नवंबर, 2023
श्रम के पर्याय आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अर्हत् वाङ्मय की अमी वर्षा करते हुए फरमाया कि तप के छः प्रकार आभ्यंतर तप के हैं। आभ्यंतर तप में एक हैµवैयावृत्य। वैयावृत्य यानी सेवा। सेवा धर्म परम गहना है और योगियों के लिए भी आगम्य है। सेवा एक व्यापक तत्त्व है। साधु, संस्था हो या समाज सेवा-वैयावृत्य का महत्त्व है, ढंग अपना-अपना हो सकता है। भगवती सूत्र में वैयावृत्य दस प्रकार का बताया गया है। साधु समुदाय में आचार्य वैयावृत्य होता है। सेवा के अनेक प्रयोजन हो सकते हैं। आचार्य वृद्ध नहीं है, युवा है, फिर भी आचार्य की सेवा करो। जैसे गुरुदेव तुलसी जब आचार्य बने थे तब मगन मुनि ने उन्हें हाथ का सहारा देने के लिए हाथ आगे किया था। आचार्य संघ के सर्वोच्च पद पर होते हैं। आचार्य धर्मसंघ में वी0वीआईपी होते हैं।
आचार्य को गोचरी में भी समय ज्यादा नहीं लगाना चाहिए। आचार्य के जो भी छोटे-मोटे कार्य हैं, वो साधु-साध्वियाँ कर दें। आचार्य तो अपना समय ज्ञान देने, व्यवस्था में नियोजित करे। वैसे आचार्य अपना कार्य स्वयं कर सकते हैं, अहंकार न हो। आचार्य को अनुकूलता रहे, ऐसा प्रयास हो। उपाध्याय वैयावैच्य, स्थविर वैयावच्य, वृद्ध, ग्लान, रोगी, शैक्ष, गणकुल आदि की सेवा करनी चाहिए। गृहस्थ भी सांसारिक रूप में माता-पिता, संतान, समाज की संस्थाओं की सेवा करे। पशुओं की भी सेवा करें। लौकिक सेवा में समय का नियोजन आवश्यकता अनुसार करना चाहिए। किसी को शिक्षा देना, सम्यक्त्वी बनाना, दीक्षा देना आदि धार्मिक- आध्यात्मिक सेवा हो जाती है।
अणुव्रत के माध्यम से भी अच्छे संस्कार दिए जाते हैं, ये भी एक सेवा का उपक्रम है। किसी की आत्मा को ऊँचा उठा देना बड़ी सेवा है। प्रबुद्ध-समझदार आदमी को धर्म के मार्ग पर ले आना भी बड़ी बात है। जैसे राजा परदेशी और कुमार श्रमण केशी। बड़े लोगों को समझा देने से आम लोग भी उस मार्ग का अनुसरण कर सकते हैं। हम सभी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा के मौके पर सेवा देते रहें। मुमुक्षु सीए धनराज बैद ने अपनी तीन कृतियाँ पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में समर्पित की। मुमुक्षु धनराज बैद ने अपनी प्रस्तुति दी। आपकी दीक्षा परसों 22 नवंबर को पूज्यप्रवर के करकमलों में होने जा रही है।
अणुविभा का 74वाँ अधिवेशन चल रहा है। जीवन विज्ञान-2023 पुरस्कार चैन्नई के राकेश खटेड़ को प्रदान किया गया। प्रबंध न्यासी तेजकरण सुराणा ने अपनी भावना रखी। राकेश खटेड़ ने अपनी भावना व्यक्त की। जीवन विज्ञान के पूर्व आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेश कुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मंच का संचालन माला कातरेला ने किया। अणुविभा द्वारा महाप्रज्ञ अलंकरण दिवस दिनांक 23-24-25 नवंबर आयोजन का बैनर अनावरण किया गया।