आचार्यश्री तुलसी के जन्मोत्सव पर
आ लौट के आओ गुरुदेव, तुम्हें यह संघ बुलाता है।
तुम हो हमारे महादेव, तुम्हें यह गण बुलाता है।।
कर युगल का प्यार पाकर जनता सम्मोहन हो जाती।
मधुर-मधुर मुस्कान देखकर, रूँ-रूँ खिल आती।
मुरजे प्राणों में भी भरते प्राण।। तुम्हें।।
अनगिन पाषण प्रभु हाथों से, यहाँ तरासे जाते।
मूर्त बनते थे वो ऐसे जग के देव कहाते।
श्रमण क्या श्रावक भी बने महान।। तुम्हें।।
दिव्यात्मा तुम सृजनात्मा तुम ही थे रचनात्मा।
कला कौशल तुम कलाकार जन-जन की तुम आत्मा।
ध्याते तुलसी तुम्हारा ध्यान।। तुम्हें।।
शासन है यह नंदन वन सा, गुरु महाश्रमण रखवाली।
पौषण देते निश दिन पल-पल, रक्षा करें गणमाली।
तेरापंथ सदा गतिमान।। तुम्हें।।
लय: आ लौट के आजा----