अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्म बोध
बंध व विविध
 
प्रश्न 29 : कार्मण शरीर का संबंध आत्मा के साथ अनादिकाल से है। अनादिकाल से संबंधित इस शरीर का अलगाव कैसे होगा?
उत्तर : कार्मण शरीर कर्म वर्गणा के संघात को कहते हैं। कर्म वर्गणा का संबंध अवधिपूर्वक होता है। अवधि समाप्त होते ही वे कर्म वर्गणा आत्मा से पृथक् हो जाती हैं। स्थिति परिपाक के साथ कर्म वर्गणा छूटती रहती है तथा नई कर्म वर्गणा का बंधन चालू रहता है। प्रवाह रूप में कर्म वर्गणा आत्मा के साथ निरंतर चलती रहती है। यह प्रवाह जब पूर्णतया रुक जाता है, तब नई कर्म वर्गणा के आगमन का द्वार बंद हो जाता है और पुरानी कर्म वर्गणा आत्मा से अलग हो जाती है। इस तरह कार्मण शरीर का अलगाव हो जाता है।
 
 
प्रश्न 30 : कर्म के विपाकोदय में क्या कोई निमित्त भी कार्यकारी बनता है।
उत्तर : कर्म के विपाकोदय में चार निमित्त कार्यकारी बनते हैं-
(1) क्षेत्र विपाक - क्षेत्र विशेष में कर्म का विपाकोदय होना। यथा- किसी व्यक्ति के बैंगलूर जाने से श्वास का रोग हो जाता है, चेन्नई जाने से वह स्वस्थ हो जाता है।
(2) जीव विपाक - बिना किसी बाहरी हेतु के क्रोधित होना, द्वेष के भाव उभरना आदि।
(3) भाव विपाक - भाव के उतार-चढ़ाव के साथ कर्मों का विपाकोदय होना।
(4) भाव विपाक - अमुक भव में कर्म की अमुक प्रकृति का विशेष रूप से विपाकोदय होना। यथा-बंदर के भव में वासना, सर्प के भव में क्रोध की प्रकृति का विशेषत: उदय रहता है।
(क्रमश:)