श्रावको! चातुर्मास के पश्चात भी अध्यात्म साधना में रमणीय बने रहना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

श्रावको! चातुर्मास के पश्चात भी अध्यात्म साधना में रमणीय बने रहना : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन मंुबई में ऐतिहासिक चातुर्मास संपन्न कर गतिमान हुए ज्योतिचरण

नंदनवन, 28 नवंबर, 2023
वृहद मुंबई नंदनवन-2023 के चातुर्मास का आज अंतिम दिन। पूज्यप्रवर का प्रवास 28 जून, से लेकर 28 नवंबर, 2023 तक का साधिक 5 मास का प्रवास आज संपन्न होने जा रहा है। आचार्यप्रवर ने लगभग 10ः25 पर अपनी धवल सेना के साथ मुंबई की आगे की यात्रा के लिए विहार किया। कई साधु-साध्वियों ने पूज्यप्रवर के निर्देशानुसार अन्य क्षेत्रों की ओर भी विहार किया।
विहार से पूर्व जिन शासन के प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान कराते हुए फरमाया कि मिगसर कृष्णा एकम का प्रभात हो गया है। चातुर्मासिक कालावधि संपन्न हो गई है। जैन शासन के भिक्षु शासन में चातुर्मास और शेषकाल की व्यवस्था है, उसके तहत चातुर्मास में चारित्रात्माओं को सामान्यतया एक ही क्षेत्र में रहना होता है। चातुर्मास संपन्नता के पश्चात उस क्षेत्र में रहना नहीं, वहाँ से विहार कर देना चाहिए।
चातुर्मास में दीक्षार्थी के साथ आए हुए कपड़े के सिवाय चारित्रात्माओं को कपड़ा भी जाँचना नहीं। शेष काल में यात्रा कर दूसरों को लाभ दिया जा सकता है। आज का दिन बिना बुझा विहार का मुहूर्त है। पूज्यप्रवर ने कुमार श्रमण केशी और राजा प्रदेशी के शेष संवाद को विस्तार से समझाया। आस्तिकवाद और नास्तिकवाद पर चर्चा चली। दोनों ही ज्ञानी पुरुष पर कुमार श्रमण केशी ने जैन धर्म के सिद्धांतों के अनुसार आत्मवाद को समझाया।
राजा हो या सरकार उसका मुख्य कार्य है-जनता की सेवा करना। प्रश्नोत्तर के पश्चात् राजा प्रदेशी नम गया। अपनी मान्यता की पकड़ को छोड़ना भी कठिन होता है, पर कुमर श्रमण केशी ने लौह बाणिये के प्रसंग से समझाकर राजा प्रदेशी को श्रमणोपासक बना दिया। नास्तिक से आस्तिक बन व्रतों को स्वीकार कर लिया। कुमार श्रमण केशी जैसे प्रवक्ता तत्त्ववेत्ता महान पुरुष का योग मिला और राजा भी समझ गया। शासन करने वाले अणुव्रती हो तो शासन सुचारु रूप से चल सकता है। शासन सत्ता के साथ धर्म भी हो। जब राजा वहाँ से प्रस्थान करने लगे तो कुमार श्रमण केशी राजा को प्रेरणा दे रहे हैं कि राजन्! तुमने धर्म को स्वीकार किया है तो तुम रमणीय बन गए हो। पर अब ध्यान रखना की रमणीय बनकर वापस अरमणीय मत बन जाना। बन खंड, नाट्यशाला, ईक्षु-वाटिका के प्रसंग से रमणीयता और अरमणीयता को समझाया।
धर्म-व्रत अध्यात्म से राजा की आत्मा रमणीय बन गई पर कुमार श्रमण केशी के चले जाने के बाद अगर राजा व्रतों से च्युत हो गया तो अरमणीय बन जाएगा। हम भी जैन शासन तेरापंथ की संतान हैं। आचार्य भिक्षु के वंशज हैं। कुमार श्रमण केशी से समान ही हैं। आगे वृहतर मुंबई की यात्रा है। वृहतर मुंबई के श्रावक-श्राविका समाज भी यहाँ से जाने के बाद अरमणीय न बन जाएँ। जो व्रत-संकल्प लिए हैं, उनको जागरूकता से निभाते हुए अध्यात्म साधना में आगे बढ़कर रमणीय बने रहें। हमारे में भी रमणीयता बनी रहे।
‘प्रभु तुम्हारे पावन पथ पर जीवन अर्पण है सारा’। गीत का सुमधुर संगान पूज्यप्रवर ने करवाया। यह प्रभु का पंथ, हे प्रभो यह तेरापंथ पर हम आगे बढ़ते रहें। अनेक चारित्रात्माओं को यहाँ चातुर्मास करने का मौका मिला। 68 वर्षों का अंतराल थोड़ी ज्यादा ही देरी लग रही है। इतना बड़ा श्रावक समाज यहाँ प्रवासित है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का भी यहाँ लंबा प्रवास हुआ था। अनेक जैन-अजैन लोगों से यहाँ संपर्क हुआ है। सभी चारित्रात्माएँ अच्छा कार्य करते रहें।
मुख्यमुनि महावीर कुमार जी ने पूज्यप्रवर के मुंबई चातुर्मासिक प्रवास को ऐतिहासिक चातुर्मास बताया। अनेक साधना यहाँ हुई। तप-जप, आगम वाचन आदि से पूज्यप्रवर ने मंगलमय वाणी से पूज्यप्रवर ने समझाया। मुंबई के लोगों में श्रद्धा है। कई श्रावक बारहव्रती और उससे भी आगे बढ़े हैं। 21 रंगी जैसा महान तपोनुष्ठान हुआ। मदनलाल तातेड़ ने संपूर्ण मुंबईवासियों की तरफ से पूज्यप्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए मंगलभावनाएँ अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के मंगलपाठ से नंदनवन का प्रवास संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।