साधु-साध्वियाँ कुमार श्रमण केशी की तरह ज्ञान और तर्क शक्ति का विकास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधु-साध्वियाँ कुमार श्रमण केशी की तरह ज्ञान और तर्क शक्ति का विकास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

चातुर्मास के अंतिम दिन पूज्यप्रवर द्वारा राजा प्रदेशी के आख्यान का वाचन

नंदनवन, 26 नवंबर, 2023
समता के शिखर पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आगमों में अंग और अंग बाह्य या उपांग भी है। हमारे धर्मसंघ में बत्तीस आगम प्रतिष्ठित, मान्यता प्राप्त, और प्रमाण भूत है। उपांग आगमों में रायपसेणियं एक आगम है। उसमें सूर्याभ देव और उसका पूर्व भव राजा प्रदेशी का प्रसंग वहाँ प्राप्त होता है। राजा प्रदेशी और कुमार श्रमण केशी से जुड़ा प्रसंग भी उपलब्ध होता है। राजा प्रदेशी श्वेतिका नगरी का राजा था। कुमार श्रमण केशी भी श्रमण परंपरा के एक महान व्यक्तित्व थे। राजा प्रदेशी और केशी के बीच जो संवाद हुआ है, वो अपने आपमें महत्त्वपूर्ण है। उस संवाद में एक आस्तिकवाद का प्रवक्ता बोल रहा है, तो उधर नास्तिकवाद का प्रवक्ता बोल रहा है।
एक ओर हम केशी के समझाने की शैली और ज्ञान को देखें तो दूसरी ओर राजा प्रदेशी भी महान तार्किक है। उसकी बातें दमदार लगती हैं। पर जब केशी उसकी बातों का जवाब देते तो वे बातें भी दमदार लगती है। मानो दो विद्वान व्यक्तियों का वार्तालाप है। हमारे अनेक शैक्ष व बड़े साधु-साध्वियाँ हैं। वे समझे कि कुमार श्रमण केशी ने कैसे उत्तर दिए। हमारा ज्ञान स्पष्ट हो कि कैसे हम संगतपूर्वक किसी प्रश्न का उत्तर दे सकें।
कुमार श्रमण केशी हमारे आदर्श हैं। तार्किक बात का महत्त्व है। हमारे साधु-साध्वियों में कई अच्छे प्रवचन देने वाले हैं, अच्छी प्रस्तुति देने वाले हैं। राजा प्रदेशी और कुमार श्रमण केशी के संवाद से दो बातें सामने आ जाती हैंµतद्जीव तद् शरीरवाद और अन्य जीव और अन्य शरीरवाद। मूल चर्चा का विषय था कि आत्मा और शरीर एक है या अलग-अलग है। इस पर उन्होंने चर्चा की थी।
आचार्यश्री तुलसी भी अपने ढंग से तत्त्व की बातें समझाते थे। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की पुस्तक हैµशरीर और आत्मा। वह भी कुमार श्रमण केशी और राजा प्रदेशी के संवाद पर आधारित है।
गुरुकुलवास का विशाल चातुर्मास इस नंदनवन परिसर में हुआ है। अब चातुर्मास संपन्न हो रहा है। सब साधु-साध्वियाँ सुखे-सुखे विचरण करें, यह हमारी मंगलभावना है।
आज चतुर्दशी है, पूज्यप्रवर ने हाजरी की वाचना कराते हुए मर्यादाओं में जागरूक रहने की प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। परसों से विहार होना है। व्यवस्थाओं के बारे में समझाया। लेख-पत्र का समूह में वाचन हुआ। हम अच्छी साधना करते रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि पाँच आचारों की विवेचना की। अनेक कार्यक्रम नंदनवन में चल रहे थे। ज्ञान की बातें होती थीं। आचार्यप्रवर का भगवती आगम पर प्रवचन भी महत्त्वपूर्ण था। प्रवचन में ज्ञान का निर्झर हो रहा था। चातुर्मास श्रावकों की ज्ञान पिपासा को शांत करने वाला रहा है। सम्यक् दर्शन के प्रति सभी की श्रद्धा हो।
मंगलभावना समारोह के द्वितीय दिन मुंबई ज्ञानशाला की संयोजिता अनिता परमार, मुंबई सभा के कार्याध्यक्ष नवरतनमल गन्ना, वरिष्ठ उपाध्यक्ष कन्हैयालाल मेहता, निर्मला चिंडालिया, चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के प्रचार मंत्री मांगीलाल छाजेड़, अशोक बरलोटा, भोजनशाला संयोजक महेंद्र तातेड़, स्वागताध्यक्ष सुरेंद्र बोरड़ पटावरी, चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री सुरेंद्र कोठारी, गौतम कोठारी, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की कोषाध्यक्ष तरुणा बोहरा, मुंबई सभा के मंत्री दीपक डागलिया, चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के प्रबंधक मनोहर गोखरू ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। इस दौरान मुंबई ज्ञानशाला परिवार व मुंबई कन्या मंडल ने भी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। मंगलभावना समारोह में नरेंद्र मेहता ने भी आभार अभिव्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।