ज्ञान-ध्यान की साधना में सहायक बनता है स्वाध्याय : आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन, 23 नवंबर, 2023
ज्ञान समंदर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म की साधना में ध्यान का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। शरीर में जो स्थान शीर्ष का है, पेड़ में जो स्थान मूल का है, उसी प्रकार साधु धर्म में ध्यान का महत्त्व होता है। स्वाध्याय ज्ञान विकास का एक साधन है और स्वाध्याय में ध्यान की साधना भी सहायक बन सकती है। ध्यान के विकास में भी स्वाध्याय का सहयोग हो सकता है। स्वाध्याय और ध्यान का जोड़ा है। स्वाध्याय-ध्यान की स्मृति से परमात्मा का साक्षात्कार हो सकता है। ध्यान और स्वाध्याय का यह परिणाम आना चाहिए कि वीतरागता की प्राप्ति हो। अन्य लब्धियाँ प्राप्त होना तो साधारण बात है। साधना की सिद्धि तो वीतरागता की प्राप्ति ही है। हम थोड़े में ही न उलझें। जो साधु छोटी सिद्धि में उलझ जाता है, वह बड़ी सिद्धि से वंचित रह जाता है। हमारा लक्ष्य ऊँचा हो।
शुक्ल ध्यान की अवस्था किसी-किसी महान साधक को प्राप्त हो सकती है। शुक्ल ध्यान के चार लक्षण बताए गए-क्षांति, मुक्ति, आर्जव और मार्दव। हमारे में इन चारों का विकास हो। इनके सामने और बातें तुच्छ हैं। साधुत्व के सामने भौतिक धन तुच्छ है। जो अकिंचन है, वह तो तीन लोक का मालिक है। चित्त में एकाग्रता नहीं होने से ज्ञान प्राप्ति में बाधा आ सकती है। चित्त की स्थिरता और निर्मलता बढ़े। कषाय मंद पड़े। चंचलता दूर हो। चित्त की स्थिरता और निर्मलता ही विशेष उपलब्धि है। जीवन में सद्गुणों का महत्त्व है। भौतिक चीजों को महत्त्व न दे। हमारा दृष्टिकोण सही हो। हम क्षांति, मुक्ति, आर्जव, मार्दव का हमारे में विकास करने का प्रयास करें।
जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुछ व्यक्तित्व पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहुँचे हैं। आनंद त्रिपाठी ने दूरस्थ पाठ्यक्रम से अध्ययन करने की बात बताई। जैविभा विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर बच्छराज दुगड़ ने बताया कि इस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त प्रशिक्षण कुछ विशेष है। केंद्रीय विश्वविद्यालय के संजीव शर्मा ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। यह विश्वविद्यालय विद्यार्थियों को पारंपरिक ज्ञान प्रदान कराने वाला संस्थान है। जोधपुर युनिवर्सिटी के कुलपति ए0के0 मलिक ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की कि संस्थान शिक्षा के साथ संस्कारों का भी बीजारोपण करता है।
जैन विश्व भारती अनुशास्ता पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि ज्ञान प्राप्त करना सरस्वती की साधना है। ज्ञान के साथ सद्गुणों का विकास हो। हम श्रुतसंपन्न और शील संपन्न बनें। ज्ञान के साथ आचार भी पुष्ट हो। ज्ञानविहीन आचार या आचारविहीन ज्ञान अधूरे हैं। संस्थान में ज्ञान-यज्ञ चलता रहे। खूब परोपकार का काम करते रहें। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।