आचार्यश्री तुलसी के 110वें जन्मोत्सव के आयोजन

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आचार्यश्री तुलसी के 110वें जन्मोत्सव के आयोजन

चंडीगढ़
भारत की पुण्य धरा पर अनेक ऋषियों, संतों तथा मनीषियों ने जन्म लेकर अपना तथा समाज का जीवन सार्थक किया है। ऐसे ही एक मनीषी थे आचार्यश्री तुलसी। वे महावीर स्वामी द्वारा प्रवर्तित जैन पंथ की तेरापंथ शाखा में मात्र 11 वर्ष की अवस्था में दीक्षित हुए और 22 वर्ष में इस धर्मसंघ के नौवें अधिशास्ता बन गए। आचार्य तुलसी यों तो एक पंथ के प्रमख थे पर उनका व्यक्तित्व सीमातीत था। अपनी मर्यादाओं का पालन करते हुए भी उनके मन में संपूर्ण मानवता के लिए प्रेम था, इसलिए सभी धर्म, मत और पंथ, संप्रदायों के लोग उनका सम्मान करते थे। उनका जीवन एक खुली किताब की तरह था। यह शब्द मनीषी संत मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने द्विदिवसीय तुलसी अमृत कथा के दौरान व्यक्त किए।
मुनिश्री ने कहा कि आचार्य तुलसी अपने प्रवचन में गूढ़ तथ्यों को इतनी सरलता से समझाते थे कि सामान्य व्यक्ति को भी वे आसानी से समझ में आ जाते थे। मुनिश्री ने कहा कि प्रखर बुद्धि एवं वक्तृत्व कौशल के धनी थे आचार्यजी। आचरण व व्यवहार को भी अध्यात्म जितनी ही प्राथमिकता देते थे। आचार्य तुलसी जन-जन के कल्याण के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहे। अणुव्रत को और अधिक सहज बनाने के लिए उन्होंने प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान को प्रचलित किया। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से व्यक्ति अंतर्मुखी होकर स्वयं की अच्छाई एवं कमियों को जानने का प्रयास करता है। इसी प्रकार जीवन विज्ञान के द्वारा वे जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों के पीछे छिपे विज्ञान को सबके सम्मुख लाए। अणुव्रत के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने व्यापक भ्रमण किया।