योग-ध्यान के प्रयोग से करें मन की चंचलता को दूर : आचार्यश्री महाश्रमण
कालबादेवी, 18 दिसंबर, 2023
कालबादेवी प्रवास के दूसरे दिन आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के अनंतर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में आत्मा तो मूल तत्त्व है। आत्मा के साथ तीन चीजें और हैं-शरीर, वाणी और मन। शरीर, वाणी और मन प्रवृत्ति-कार्य करने के साधन हैं। इन तीनों का जीवन में बहुत महत्त्व है। मन हर प्राणी के पास नहीं हो सकता है। कुछ प्राणियो के पास होता है। हम मनन करें कि हमारे पास मन है, तो हम इसका बढ़िया उपयोग कैसे करें। मन के दो दुर्गुण भी हैं-मन की चंचलता और मन की अशुभ प्रवृत्ति। योग-ध्यान के प्रयोग से चंचलता को कम किया जा सकता है। मन को थोड़ा समझाने का प्रयास करना चाहिए। तन की चंचलता को कम करने से मन की एकाग्रता बढ़ सकती है। अभ्यास के द्वारा चंचलता कम की जा सकती है।
मन की मलिनता को भी दूर करने का हम प्रयास करें। ज्यादा गुस्सा, अहंकार न आए, मन प्रसन्न रहे, ऐसा चिंतन करें। सकारात्मक सोच रखें, नकारात्मकता से दूर रहें। हर स्थिति में हम प्रसन्न रहें, दुःखी न बनें, सुखी रहें। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी जीवन विज्ञान के संदर्भ में फरमाते थे कि कैसे विद्यार्थियों में भावों पर नियंत्रण रखने के साथ ज्ञान और संस्कार का विकास हो सकता है। ड्रग्स व नशे से विद्यार्थियों को संकल्पित होकर, बचने का प्रयास करना चाहिए। बुद्धि के साथ शुद्धि भी रहे। शिक्षक निर्माण करने वाले होते हैं, वे विशेष रूप से विद्यार्थियों को जागरूक करते रहें।
मन की निर्मलता का विकास होने से मन शांत रह सकता है। शिक्षण संस्थानों में ज्ञान और संस्कार के रूप में विद्यार्थियों का निर्माण किया जा सकता है। व्यक्ति योग-ध्यान द्वारा मन की चंचलता को कम कर शुभ प्रवृत्ति में मन को रखने का प्रयास करें। आज महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल के विद्यार्थी पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहुँचे। इसी विद्यालय के विद्यार्थी बाल मुनि जयेश कुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए पूज्यप्रवर की अभिवंदना की।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेयुप अध्यक्ष नितीश धाकड़, आचार्य महाप्रज्ञ विद्यानिधि फाउंडेशन से किशनलाल डागलिया, तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल द्वारा प्रस्तुति दी गई। स्कूल के विद्यार्थी, स्कूल के चेयरमैन एस0के0 जैन, वनिता मनसुखाणी, महक जैन ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।