शुक्ल लेश्या में रहकर परिणामों को अच्छा रखने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

शुक्ल लेश्या में रहकर परिणामों को अच्छा रखने का हो प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

बांद्रा ईस्ट, 13 दिसंबर, 2023
पूज्यप्रवर आज प्रातः पाली हिल्स से खार होते हुए बांद्रा ईस्ट पधारे। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया है कि यह पुरुष अनेक चित्त वाला है। यह मन एक घोड़े की तरह है। यह मन कभी दुष्ट अश्व बन जाता है और उत्पथ की ओर दौड़ने लग जाता है। चित्त और मन अलग-अलग भी हो सकता है। जहाँ एक ओर चित्त को चेतना के लिए प्रयुक्त किया गया है जैसे सचित और अचित। कहीं चित्त को मन के संदर्भ में भी प्रस्तुत किया गया है। आदमी के चित्त की स्थितियाँ बदलती भी रहती है। भाव परिवर्तित हो जाते हैं। मन और भाव का भी संबंध होता है।
चित्त, मन, भाव और लेश्या का भी आपस में संबंध है। छः लेश्याएँ बताई गई हैं। सभी संसारी जीवों में लेश्याएँ होती हैं। मनुष्य में किसी-किसी को लेश्या रहित भी कहा गया है। केवलज्ञानी जो तेरहवें गुणस्थान में हैं, वे भी सलेश्य है। उनमें भी शुक्ल लेश्या होती है। परंतु केवली जब तेरहवें गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान में जाते हैं, तब चौदहवें गुणस्थान में लेश्या नहीं होती है। वह अलेश्य अवस्था हो जाती है। योग और लेश्या में बड़ा निकट का संबंध लगता है। जहाँ लेश्या है, वहाँ योग है। योग है, वहाँ लेश्या है इस तरह सहचरत्व दोनों में हैं। छठे गुणस्थान के प्राणियों में छहों लेश्याएँ हो सकती हैं। भावों का परिवर्तन भी होता रहता है। कृष्ण, नील, कापोत लेश्या के अशुभ परिणाम हैं। तेजस, पद्म और शुक्ल लेश्या के शुभ परिणाम होते हैं।
जैसी भावना होती है, वैसी सिद्धि होती है। कर्मों का बंध भावों पर टिका हुआ है। मनुष्य के मन के भाव ही बंध और मुक्ति के कारण हो सकते हैं। कई बार आदमी के ऊपर के भाव अलग होते हैं और भीतर के भाव अलग होते हैं। हमारा शुक्ल लेश्या में रहना हो, अच्छे भाव, अच्छे परिणाम हो। वाणी में और भीतर में अंतर न हो, कथनी-करनी की एकरूपता रहे। छल-कपट न करें, सरलता में रहें। हम लेश्या को समझकर अपने परिणामों को अच्छा रखने का प्रयास करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि सूर्य बिना याचना किए चारों ओर प्रकाश फैलाता है। बादल अमीर-गरीब को नहीं देखता है। चंद्रमा अपनी शीतलता चारों ओर फैलाता है, उसी तरह संत और सज्जन लोग परहित में अपना जीवन अर्पित कर देते हैं। दूसरों के कल्याण-हित के बारे में सोचते हैं। उनकी कथनी-करनी में फर्क नहीं होता है। हम गुरुदेव के जीवन को देखें, परमार्थ ही उनके जीवन का ध्येय बना हुआ है। जो दूसरों का हित चाहता है, उसका हित अपने आप सध जाता है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना-स्वागत में बांद्रा सभा की ओर से मदनलाल चपलोत, जितेन्द्र परमार, मुकेश नवलखा, ज्ञानशाला, तेयुप अध्यक्ष महेश चपलोत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने गीत का संगान किया। तेरापंथ किशोर मंडल व तेरापंथ कन्या मंडल ने ‘मेमोरी ऑफ मुंबई चातुर्मास’ की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के अंत में तारक मेहता का उल्टा चश्मा की टप्पू सेना के कलाकारों ने पूज्यप्रवर के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।