व्यक्ति के आचरण में हो धर्म का समावेश : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

व्यक्ति के आचरण में हो धर्म का समावेश : आचार्यश्री महाश्रमण

मायानगरी मुंबई के उपनगर हो रहे ज्योतिचरण से पावन

कुर्ला ईस्ट, नेहरू नगर, 26 दिसंबर, 2023
अणुव्रत यात्रा प्रणेता आज प्रातः कुर्ला ईस्ट से नेहरू नगर पधारे। संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आर्ष वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में अनंत-अनंत आत्माएँ हैं। उनको चार विभागों में बाँटा जा सकता है-परमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा। परमात्माएँ-जो मोक्ष में विराजमान सिद्ध भगवान हैं, वे परमपद को प्राप्त हो गए हैं। अन्य आत्माएँ तो संसारी अवस्था से युक्त हैं। मनुष्य तीन प्रकार के हो सकते हैं। जो संत लोग हैं, गृह त्यागी हैं साधना में लगे हुए हैं, कंचन-कामिनी के परित्यागी होते हैं, वे महात्मा होते हैं। जिनके मन, वचन और काय के आचरणों में एकरूपता है, वो महात्मा होते हैं। सारे मनुष्य तो महात्मा बन नहीं सकते।
जो गृहस्थ हैं, वो दो प्रकार के हो जाते हैं-सदात्मा और दुरात्मा। जो सज्जन लोग हैं, भले आदमी हैं, प्रामाणिक हैं, दया भाव रखने वाले गृहस्थ सदात्मा हैं। जो बुरी आत्मा वाले लोग हैं, जो धोखा देने वाले, चोरी-झूठ में ज्यादा रचे-पचे रहते हैं, हिंसा कर देते हैं, नशे में भी लिप्त हो जाते हैं, ऐसे दुराचरण करने वाली आत्मा दुरात्मा होती है। अगर कोई किसी के गले का छेदन कर दे वो शत्रु इतना बड़ा अहित नहीं करता है, जितना अहित जो आत्मा दुरात्मा बनी है, वह करती है। दुरात्मा जन्म-जन्मांतर तक संसार में भटकती हुई दुःख भोगती है। जब मृत्यु निकट आती है, तब वह आत्मा सोचती है कि मैंने कितने क्रूर काम किए अब मुझे नरक में जाना पड़ेगा। नरक में कितने दुःख भुगतने पड़ते हैं, ऐसा पश्चाताप होता है।
गृहस्थों के लिए धातव्य है कि महात्मा तो नहीं बन सकते, पर दुरात्मा तो न बनें। सदात्मा बने रहें, सज्जन बने रहें। छोटे-छोटे संकल्प आदमी के जीवन में आएँ। हिंसा-अप्रामाणिकता और चोरी से दूर रहें। अणुव्रत के छोटे नियम से आदमी की आत्मा दुरात्मा बनने से बच सकती है। किसी के साथ असद्-छल-कपट न करें। दूसरों के अधिकार को छीनने का प्रयास न करें। यह मानव जीवन हमें मिला हुआ है, इसका सदुपयोग करें। सन्मार्ग पर चलने का प्रयास करें। धर्म के दो प्रकार हो जाते हैं-उपासनात्मक धर्म और आचरणात्मक धर्म। दोनों धर्म जीवन में रहे। अपने आचरणों में भी धर्म को रखें। हम गुणों को देखें, अवगुणों को न देखें। कमजोरी को भी कमजोर करने का प्रयास करना चाहिए। हमारी आत्मा ही हमें सुख-दुःख देने वाली है। गृहस्थ सज्जन बने रहें, सदात्मा बनें। दुरात्मा होने से बचें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हमें सदात्मा बनने के लिए पुरुषार्थ करना होगा। गुरु तो हमें दर्पण दे देते हैं, मुखड़ा हमें स्वयं को ही देखना पड़ेगा। गुरु मार्गदर्शन देकर उस पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, पर पुरुषार्थ हमें स्वयं करना होता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्वामी विवेकानंद स्कूल की प्रिंसिपल गीता सिंह ने विचार व्यक्त किए। तेरापंथ महिला मंडल एवं तेयुप ने गीत प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला एवं तेरापंथ कन्या मंडल द्वारा प्रस्तुति दी गई। स्थानीय विधायक मंगेश कुडालगर, स्थानकवासी समाज की ओर से ऋषभ सांखला, मूर्तिपूजक समाज की ओर से डॉ0 मुकेश बोहरा, मीना साबत्रा, प्रेक्षाध्यान की संभागी बहनों ने गीत से अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।