अपनी शक्ति से हो स्व एवं पर का कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अपनी शक्ति से हो स्व एवं पर का कल्याण : आचार्यश्री महाश्रमण

सायन-वड़ाला, 22 दिसंबर, 2023
अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः महाप्रज्ञ पब्लिक स्कूल से विहार कर अनेक क्षेत्रों का स्पर्श करते हुए सायन-कोलीवाड़ा क्षेत्र में पधारे। युगप्रधान, महातपस्वी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में शक्ति का बहुत महत्त्व होता है। जो व्यक्ति अशक्त-निर्बल-कमजोर होता है, वह एक प्रकार से अभिशापित होता है। जीवन में शक्तिशाली होना अच्छे भाग्य की बात होती है। हमारे जीवन में अनेक प्रकार के बल हो सकते हैं, जैसे-तन बल, मनोबल और वचन बल। गृहस्थ जीवन में चौथा बल है-धन बल। पाँचवाँ बल है-बुद्धि बल। ये बल आदमी के पास हैं तो आदमी बलवान होता है।
शक्ति का उपयोग कल्याणकारी कार्यों में हो, उसका दुरुपयोग न हो। दुर्जन आदमी के पास विद्या है, तो वह उसका विवाद में उपयोग करता है। सज्जन आदमी के पास बुद्धि है तो वह दूसरों को ज्ञान देता है। ज्ञान का विकास करता है। वही बात धन की है। दुर्जन का धन अहंकार का कारण बनता है। सज्जन आदमी धन का दान करता है। दुर्जन ताकत का दूसरों को दुःख देने में उपयोग करता है। सज्जन के पास शक्ति है तो वह दूसरों की सहायता करता है।
संत-सज्जन विभूतियाँ परोपकार के लिए होती हैं। जीवन मिला है तो हम दूसरों के कल्याण के लिए क्या करते हैं? बुद्धि से गलत काम किए जा सकते हैं, तो अच्छे कामों में भी बुद्धि को लगाया जा सकता है। आचार्य भिक्षु हमारे धर्मसंध के आद्य प्रवर्तक थे, उन्होंने कहा है कि बुद्धि वो ही सराहने लायक है, जो जिन धर्म का सेवन करे। वह बुद्धि किस काम की जो पड़ी-पड़ी पाप-कर्म का बंध करे। बुद्धि तो अपने आपमें क्षयोपशम भाव है, पर उसका उपयोग अच्छा या खराब हो सकता है।
दुनिया में बलवान का महत्त्व है। शरीर में शक्ति है, तभी वीर्य प्रकट होता है। शक्ति होने पर भी जो क्षमा भाव रखता है, वह बड़ा होता है। आलोचना का जवाब अच्छे कार्यों से दो। हम शक्ति के द्वारा स्वयं का भी कल्याण करें और दूसरों का भी भला करने का प्रयास करें। वीर्य लब्धि का उपयोग किसमें करना चाहिए, यह आदमी में विवेक रहे। गुरुदेव तुलसी ने संघर्षों-विरोधों में भी मनोबल रखा था। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अपनी शक्ति का ज्ञान बढ़ाने और ज्ञान बाँटने में उपयोग किया था।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि चंदन और चंद्रमा की उपमा साधु-सज्जन व्यक्ति को जा सकती है। साधु की संगति सबसे शीतल होती है। इस शीतलता को प्राप्त करने के लिए लोग पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहुँचते हैं। शीतलता महापुरुष ही प्रदान कर सकते हैं। पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहुँचकर लोग धन्यता का अनुभव करते हैं। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में तेयुप से हिम्मत सोलंकी, तेरापंथ महिला मंडल, तेरापंथ सभा, मुंबई के कार्याध्यक्ष नवरत्नमल गन्ना एवं अन्य कई श्रावक-श्राविकाओं ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।