आराध्य के प्रति हो भक्ति का भाव : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आराध्य के प्रति हो भक्ति का भाव : आचार्यश्री महाश्रमण

सायन कोलीवाड़ा, 23 दिसंबर, 2023
सायन कोलीवाड़ा प्रवास के दूसरे दिन अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि जगत् में चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया जाता है। अर्हत मनुष्य जगत में उच्च व्यक्तित्व होते हैं। आध्यात्मिक जगत में उनसे बड़ा व्यक्ति मिलना मुश्किल या असंभव प्रतीत हो रहा है। अध्यात्म के वे अधिकृत प्रवक्ता होते हैं। तीर्थंकर अनंत ज्ञान के धारक होते हैं, अतिशय संपन्न होते हैं। जैन शासन में नवकार मंत्र अत्यधिक प्रसिद्ध है। यह एक भक्ति का प्रयोग है। नमन कर लेना भक्ति का उदाहरण है। किसी के पैर में मस्तक लगाना तो कितनी बड़ी भक्ति हो सकती है। अपने आराध्य के प्रति भक्ति का भाव होना चाहिए। तीर्थंकर नाम गौत्र का बंध भी भक्ति से हो सकता है।
किसी व्यक्ति, सिद्धांत या आदर्श के प्रति भक्ति या समर्पण का भाव हो सकता है। अध्यात्म में हमारी आत्मा के प्रति, जिनवाणी के प्रति सच्चाई के प्रति भक्ति हो। ज्ञानशाला से बच्चों में ऐसे अच्छे संस्कार आ सकते हैं। बच्चों में संस्कारों की संपदा हो, ज्ञानार्थी बच्चों में प्रशिक्षण देने वाले तत्त्वज्ञान का भी बोध कराएँ। बच्चे अच्छे होते हैं, तो समाज-राष्ट्र का भविष्य अच्छा हो सकता है। पूज्यप्रवर ने ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों से प्रवचन के दौरान सुनाई गई कथा सुनाने को कहा, जिसे ज्ञानार्थियों ने अपनी शैली में प्रस्तुत किया। धूलिया में चातुर्मास कर पहुँची साध्वी सिद्धप्रभा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। सहवर्ती साध्वियों ने गीत से अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अभिव्यक्ति दी। स्थानीय सभा की ओर से अशोक धाकड़, तेयुप, सभा द्वारा संयुक्त रूप से गीत प्रस्तुत किया गया। महिला मंडल, स्कूल की छात्राओं एवं कन्या मंडल ने अपनी अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।