जीवन निर्माण में सत्संग का महत्त्वपूर्ण योगदान

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जीवन निर्माण में सत्संग का महत्त्वपूर्ण योगदान

चंडीगढ़।
मनुष्य के चरित्र निर्माण में संगति का बहुत प्रभाव पड़ता है। हमारे शास्त्रों में सत्संगति को बहुत महत्त्व दिया गया है। सत्संगति का अर्थ सच्चरित व्यक्तियों के संपर्क में रहना, सच्चरित व्यक्तियों की संगति से साधारण व्यक्ति भी महत्त्वपूर्ण बन जाता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में ही जन्म लेता है और अंत तक रहता है। अपने परिवार, संबंधियों और आस-पड़ोस वालों और अपने कार्यस्थल में वह कई प्रकार के स्वभाव वाले व्यक्तियों के संपर्क में आता है। निरंतर संपर्क के कारण एक-दूसरे का प्रभाव एक-दूसरे के विचारों और व्यवहार पर पड़ते रहना स्वाभाविक है। यह शब्द मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
मुनिश्री ने आगे कहा कि बुरे व्यक्तियों के संपर्क में हम पर बुरे संस्कार पड़ते हैं और अच्छे लोगों के संपर्क में आकर हममें गुणों का समावेश होता चला जाता है। धीरे-धीरे आयु बढ़ने के साथ मनुष्य जीवन का अर्थ समझने का प्रयास करता है और उसकी संगति के अनुसार ही जीवन के प्रति उसका दृष्टिकोण बनता है। सत्संगति मनुष्य को उच्च विचारों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है और उसके चरित्र बल को बढ़ाती है।