अवबोध
मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’
मार्ग बोध
ज्ञान मार्ग
प्रश्न-24 : क्या ज्ञान की उपलब्धि क्षयोपशम से होती है?
उत्तर : प्रथम चार ज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम व केवल ज्ञान उसके क्षय से उपलब्ध होता है।
प्रश्न-25 : ज्ञान और अज्ञान में क्या अंतर है?
उत्तर : ज्ञान और अज्ञान दोनों क्षयोपशमजन्य है। मति ज्ञान-मति अज्ञान, श्रुत ज्ञान-श्रुत अज्ञान व अवधि ज्ञान-विभंग अज्ञान में कोई अंतर नहीं है। सम्यक् दृष्टि का ज्ञानज्ञान व मिथ्या दृष्टि का ज्ञानअज्ञान है। मिथ्यात्व-सहवर्ती होने के कारण ही वह अज्ञान कहलाता है। जो अज्ञान औदयिक है, उसका यहाँ उल्लेख नहीं है।
प्रश्न-26 : ज्ञान पाँच हैं अज्ञान तीन, ऐसा क्यों?
उत्तर : मन:पर्यव ज्ञान व केवल ज्ञान सिर्फ सम्यक् दृष्टि संयति के ही होता है, इसलिए अज्ञान तीन ही हैं।
प्रश्न-27 : दर्शन किसे कहते हैं?
उत्तर : ज्ञेय पदार्थ का विशद रूप में बोध न होकर मात्र अस्तित्व का बोध होता है, जिसका कोई आकार नहीं बन पाता, उसे दर्शन कहते हैं। इसे निराकार उपयोग या निर्विकल्प उपयोग भी कहते हैं। इसके चार भेद हैंचक्षु, अचक्षु, अवधि व केवल दर्शन।
प्रश्न-28 : चारों दर्शन का स्वरूप क्या है?
उत्तर : चक्षु के सामान्य बोध को चक्षु दर्शन व शेष इंद्रिय तथा मन के सामान्य बोध को अचक्षु दर्शन कहते हैं।
अवधि और केवल के सामान्य बोध को क्रमश: अवधि दर्शन और केवल दर्शन कहते हैं।
(क्रमश:)