भगवान महावीर के निर्वाण महोत्सव वर्ष पर कार्यक्रम का आयोजन
बीदासर।
समाधि केंद्र व्यवस्थापिका साध्वी रचनाश्री जी के सान्निध्य में भगवान महावीर के 2550वें निर्वाण महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर साध्वीश्री जी ने कहा कि जैन कौन है? जो राग-द्वेष को जीतकर धर्म की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं, उस धर्म को अपनाने वाले जैन कहलाते हैं। अंग्रेजी में जैन शब्द 4 अक्षरों से बनता है। इन चार अक्षरों में जैन की परिभाषा दी गई है। पहला अक्षरµजे फोर जस्टिस यानी न्याय। ए फोर एफेक्शन यानी प्रेम भाव। आई फोर इंट्रोस्पेक्शन यानी गहन आध्यात्मिक रुचि। एन फोर नोवल्टी यानी मन दया के भाव से भीगा रहे। जैनियों की एक मुख्य पहचान है वह रात्रि भोजन नहीं करते, शुद्ध शकाहार भोजन करते हैं और नशे से कोसों दूर रहते हैं। यह मुख्य पहचान आज धूमिल सी हो रही है। उपस्थित सभा को संबोधित करते हुए साध्वीश्री जी ने जैनत्व की पहचान को बनाए रखने की प्रेरणा दी।
जैन नियम अध्यात्मिक महत्त्व रखते हैं। आज का व्यक्ति इसे 16वीं शताब्दी की बात कहता है, लेकिन 2550 वर्ष पूर्व भगवान महावीर द्वारा उपदिष्ट ये नियम आज के वैज्ञानिक उपयोगिता को भी सिद्ध करते हैं। जिस प्रकार अन्य मतावलंबी अपने धार्मिक नियमों का आज भी पालन करते हैं, वैसे ही जैनी भी अपनी पहचान उजागर करने वाले इन नियमों के प्रति जागरूक बनें। साध्वीश्री जी ने श्रावक-श्राविकाओं को ‘लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते’ इस आर्ष वाणी के जप की प्रेरणा दी। साध्वी जागृतयशा जी ने भगवान महावीर पर अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित ‘जय महावीर भगवान’ गीत से हुआ। साध्वीश्री जी ने इस वर्ष भगवान महावीर, श्रमण महावीर एवं पुरुषोत्तम महावीर पुस्तक के स्वाध्याय की प्रेरणा भी प्रदान की।