आत्मा के लिए अहितकर है भौतिकता की कामना : आचार्यश्री महाश्रमण
चेम्बूर, 28 दिसंबर, 2023
जिनशासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः विहार कर चेम्बूर पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परम पूज्यप्रवर ने फरमाया कि हमारी इस दुनिया में भौतिकता भी है, तो आध्यात्मिकता भी है। आदमी पदार्थों के प्रति आकृष्ट हो भौतिकता के प्रति आकर्षित हो जाता है। वह भौतिकता को इतना महत्त्व देता है कि आध्यात्मिकता तो मानो दब जाती है या बहुत कम रह जाती है। चाहिए-शब्द के दो अर्थ हो जाते हैं-एक तो जीवन में आवश्यकता है, इसलिए पदार्थ चाहिए। दूसरी बात है कि आवश्यकता तो ज्यादा नहीं है, पर चाह है इसलिए और चाहिए। आवश्यकता (Need) कितनी है और इच्छा (Want) कितनी है, इसका विवेक होना चाहिए। श्रावक के बारह व्रतों में पाँचवाँ इच्छा परिमाण व्रत और सातवाँ भोगोपभोग परिमाण व्रत है। इनके माध्यम से इच्छाओं के परिसीमन और पदार्थों के भोगोपभोग की सीमा करने की प्रेरणा प्राप्त होती है।
इच्छा दो प्रकार की हो सकती है-सद् इच्छा और दुर् इच्छा। आध्यात्मिक विकास, धर्म के मार्ग पर चलना, तपस्या करना, बारह व्रती बनना आदि सद् इच्छा की श्रेणी में आ जाते हैं। इच्छाएँ भौतिक भी हो सकती हैं, परंतु केवल प्रतिष्ठा या लालच की कामना अहितकर हो सकती है। व्यक्ति पद भी ग्रहण करता है, सेवा भावना से पद पर आना गलत नहीं है, पर केवल प्रतिष्ठा या भौतिक लाभ के लिए पद पर आना अवांछनीय हो जाता है। पद पर आने से पहले व्यक्ति अपना कद देखो, अपनी योग्यता देखे और अपनी सेवा भावना का निरीक्षण करे।
जिसके मन में संतोष है वह आदमी बड़ा सुखी होता है। मोहग्रस्त व्यक्ति असंतोष वाले होते हैं, पंडित ज्ञानी व्यक्ति संतोष को धारण करते हैं। कहा गया है संतोषः परमं सुखम्-संतोष परम सुख है।
व्यक्ति को इच्छाओं के अल्पीकरण का प्रयास करना चाहिए। जिसके मन में संतोष आ जाता है, उसके लिए सर्वत्र संपदाएँ ही संपदाएँ होती हैं। अच्छे विकास में कुछ असंतोष भी होना चाहिए। ज्ञान में भी असंतोष हो। कहीं असंतोष अच्छा है, तो कहीं संतोष भी अच्छा है। सद्गुण भूषणों को हम धारण करें, ये हमारी आंतरिक शोभा बढ़ाने वाले होते हैं।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि भारत वर्ष में एक वर्ष में अनेक त्योहार आते हैं। त्योहार के समय एक उल्लास का वातावरण रहता है। गुरु का भी जब शुभागमन होता है, तो चारों ओर एक उत्सव का सा वातावरण बन जाता है। वे क्षण धन्य-धन्य होते हैं, जब व्यक्ति को गुरु का साक्षात होता है। गुरु संसार-समुद्र से पार लगाते हैं। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में संदीप कोठारी, विमल सोनी, रमेश धोका, स्वागताध्यक्ष मीनाक्षी बोहरा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। स्थानीय तेरापंथ समाज ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।