मोक्ष के लिए आवश्यक है योग साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मोक्ष के लिए आवश्यक है योग साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

काजुपाड़ा, 27 दिसंबर, 2023
जन-जन को जिनवाणी का रसास्वादन कराते हुए तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः कुर्ला से काजुपाड़ा पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने फरमाया कि भोग-योग-ये दो शब्द हैं। दोनों एक-दूसरे से अर्थ की दृष्टि से विपरीत हैं। शब्द की रचना की दृष्टि से थोड़ा ही अंतर है। आदमी को पदार्थों का भी भोग करना पड़ता है। एक है आवश्यकता की पूर्ति और दूसरी है आसक्ति। आवश्यकता और आसक्ति में अंतर है। जिसकी जीवन के लिए आवश्यकता नहीं है वह आसक्ति है। जो जरूरी है, वह आवश्यकता है। अनावश्यकता या आसक्ति से बचने का प्रयास करें।
शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श पाँच इंद्रियों के जो विषय हैं, इनका भोग यदि आसक्ति से होता है, वो अध्यात्म के प्रतिकूल हैं। पदार्थ मूल साध्य नहीं है। अंतिम साध्य तो मोक्ष है। मोक्ष के लिए योग साधना आवश्यक है। योग का एक अंग आसन-प्राणायाम भी हो सकता है। पतंजली में आठ योग बताए गए हैं। आचार्य हेमचंद्र ने बताया है-मोक्षोपायो योगो। ज्ञान, दर्शन और चारित्र जो मुक्ति का उपाय है, वह योग है। मोक्ष से हमें जो जोड़ दे वह सारा धर्म का व्यापार-प्रवृत्ति योग होता है। भोग है, वहाँ राग हो सकता है। योग है वहाँ त्याग होता है। राग के समान दुःख नहीं है और त्याग समान कोई सुख नहीं है। जीवन में भोग-राग का परिसीमन हो। त्याग-योग का विकास हो। अणुव्रत आंदोलन भी एक प्रकार का योग है। प्रेक्षाध्यान भी योग साधना है। गृहस्थों का दिनभर में कुछ समय योग साधना, ध्यान-स्वाध्याय में लगे।
अच्छा सोचे, अच्छा सुनें, अच्छा बोलें, अच्छा देखें, अच्छा पढ़ें। इन सबसे अच्छे संस्कार पुष्ट हो सकते हैं। हर क्रिया को हम योग से जोड़ने का प्रयास करें। अध्यात्म योग हमारे जीवन में चलता रहे।
योग साधना करने वाला योगी कहलाता है। अच्छे संदर्भ में हम उपयोगी बने रहें। भगवान महावीर तो महायोगी थे। परम पूज्य आचार्य भिक्षु भी उच्च कोटि के योगी थे। जीवन में सद्-संकल्प, धर्म, योग चलते रहें। गृहस्थों का जीवन भी अध्यात्म योग से जितना संभव हो सके भावित होता रहे, तो आत्मा मोक्ष की दिशा में प्रयाण कर सकती है। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ जी ने लिखा है कि मुझे अंधकार नहीं चाहिए, मुझे चकाचौंध नहीं चाहिए, संशय भी नहीं चाहिए। मुझे चाहिए कि मेरी दृष्टि सदा प्रसन्न, निर्मल और सम्यक् बनी रहे।
मोक्ष मार्ग के चार उपाय बताए गए हैं-सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप। जिस व्यक्ति की दृष्टि सम्यक् हो जाती है, उसका ज्ञान भी सम्यक् हो जाता है। जिसका ज्ञान सम्यक् हो जाता है, वह आचरण भी सम्यक् करने लग जाता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में स्थानीय स्वागताध्यक्ष नरेश पगारिया, तेममं एवं तेयुप द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। ज्ञानशाला, किशोर मंडल, कन्या मंडल ने प्रस्तुति दी। असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर महेंद्र पुरी, आरटीओ अधिकारी अनिल गलगलिया, संजय चौधरी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। विधायक दिलीप मामा लांडे, असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर महेंद्र पुरी, आर0टी0आई0 कार्यकर्ता अनिल गलगली, संजय चौधरी आदि ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अपनी भावनाएँ व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।