मन, वाणी, शरीर और इंद्रियों का संयम करने से सध सकता है आत्मानुशासन : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

मन, वाणी, शरीर और इंद्रियों का संयम करने से सध सकता है आत्मानुशासन : आचार्यश्री महाश्रमण

घाटकोपर, 6 जनवरी, 2024
संयम के सुमेरू आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि उत्तराध्ययन एक जैन आगम है, उसमें 36 अध्ययन हैं। इसमें तत्त्वज्ञान, प्रमाद न करने की प्रेरणा, अध्यात्म साधना का पथदर्शन आदि अनेक प्रसंग आते हैं। व्यक्ति स्वयं पर स्वयं का अनुशासन करे, आत्मानुशासन करे। आत्मानुशासन करने के दो उपाय बताए गए हैं-संयम और तप। अपनी आत्मा को दांत्त बनाने के लिए है संयम की साधना और तपस्या की आराधना करनी चाहिए। मन, वाणी, शरीर और इंद्रियों का संयम करने से आत्मानुशासन सध सकता है। आत्मानुशासन की बहुत ऊँची साधना तीर्थंकरों ने की है। साधना की निष्पत्ति यह आई कि वे वीतरागता को प्राप्त कर केवलज्ञान-केवल दर्शन को प्राप्त हो गए।
लोगस्स पाठ में 24 ही तीर्थंकरों को वंदन हो जाता है। इनमें तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्व हुए हैं। भगवान पार्श्व एक विलक्षण तीर्थंकर हैं। भगवान पार्श्व के संदर्भ में जितने स्तुति, स्तोत्र, मंत्र हैं, बाकी तीर्थंकरों के बारे में संभवतः नहीं है। जैन मंदिर भी लगभग जितने भगवान पार्श्व के हैं, शायद दूसरे तीर्थंकरों के नहीं हैं। भगवान पार्श्व को पुरुषादानीय कहा गया है। बाकी तीर्थंकरों के लिए शायद यह विशेषण लगभग आया नहीं है। भगवान पार्श्व एक लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं, यही उनकी विलक्षणता है। आज पौष कृष्णा दशमी भगवान पार्श्व की जयंती है। भगवान पार्श्व चातुर्याम धर्म का आख्यापन करने वाले तीर्थंकर थे।
संसार का भाग्य है कि भौतिकता के जगत में ये आध्यात्मिक पुरुष उजागर होते रहते हैं। साधना कर स्व-कल्याण तक सीमित नहीं रहते, दूसरों को भी संदेश बताकर पर-कल्याण भी करते हैं। वे वाणी का उपयोग कर देशना देने वाले होते हैं। एकांत में साधना कर अनेकांत में आकर देशना देते हैं। देशना देने से लोगों को ज्ञान प्राप्त होता है। वे तो महान आगम पुरुष-सर्वज्ञ होते हैं। उपसर्ग तो तीर्थंकरों के भी आ सकते हैं। कल्याण मंदिर स्तोत्र भगवान पार्श्व से जुड़ा हुआ स्तोत्र है। दुनिया में हमेशा तीर्थंकर और साधु रहते हैं। भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता दुनिया में हमेशा विद्यमान रहती है। भगवान पार्श्व आध्यात्मिकता का संदेश देने वाले महापुरुष हुए हैं।
तीर्थंकर अपने पूर्व तीर्थंकर का अनुसरण करने वाले नहीं होते हैं। तीर्थंकरों की वाणी हमें आगम के रूप में प्राप्त है। उनकी वाणी तो कल्याणी होती है। आगम हमारे लिए सम्माननीय है। आगम हमारी ज्ञान चेतना के विकास के माध्यम होते हैं। भगवान पार्श्व को हम उनके जन्मदिन पर वंदन कर उनसे प्रेरणा लें कि हमारे भीतर भी वीतरागता आए। बारडोली चातुर्मास संपन्न कर पूज्यप्रवर की सन्निधि में पहुँची। साध्वी सोमयशा जी एवं समूह की साध्वियों ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के स्वागत में तेयुप घाटकोपर, ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाएँ, नगरसेविका राखी जाधव, ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने अपनी भावना व प्रस्तुति दी। आरएसएस के नितेश चंद्रा ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमारजी ने किया।