परम लक्ष्य मोक्ष की हो साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

परम लक्ष्य मोक्ष की हो साधना : आचार्यश्री महाश्रमण

घाटकोपर, 7 जनवरी, 2024
महामनस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि सत्य लोक में सारभूत है। हमारी दुनिया में धर्म की महिमा है। धर्म को उत्कृष्ट मंगल कहा गया है। धर्म के अनेक प्रकारों में अहिंसा भी है। सर्व जीवों के प्रति संयम से अहिंसा जुड़ी हुई है। आदमी जीवों-अजीवों को जानता है, तब वह अहिंसा और संयम की साधना जीवों और अजीवों के संदर्भ में कर सकता है। जैन साध्वाचार में अहिंसा पर सूक्ष्म ध्यान दिया गया है। साधुओं के जीवन में अहिंसा महाव्रत होना चाहिए। जो स्थावर जीव हैं, इन जीवों के प्रति भी अहिंसा का पालन करना यह निर्दिष्ट है। साधु ईर्या समितिपूर्वक चले। रात्रि भोजन विरमण भी बहुत बड़ा संयम है। साधु तो भिक्षाचरी से अपना निर्वाह करे। भ्रमर की तरह थोड़ा-थोड़ा भोजन लेकर अपना काम चलाए। साधु के लिए किसी तरह की हिंसा न हो।
अचौर्य भी धर्म का एक प्रकार है। गृहस्थ जीवन में भी ईमानदारी रहे। ईमानदारी के भी दो आयाम हैंµझूठ नहीं बोलना और चोरी नहीं करना। ईमानदारी कभी कठिन भी हो सकती है, पर थोड़े लाभ के लिए झूठ न बोलें। आदमी का विश्वास सत्य के आधार पर हो सकता है। केवलज्ञान होने पर जो ज्ञान होता है, वह सर्वज्ञता वाला ज्ञान है। कोई बात अज्ञात नहीं रहती। अध्यात्म की साधना करते-करते अतीन्द्रिय-ज्ञान से सच्चाई प्रकट हो सकती है। अध्यात्म और विज्ञान में समानता भी हो सकती है। तो कहीं-कहीं असमानता भी हो सकती है। अध्यात्म में मोक्ष, राग-द्वेष मुक्ति और आत्मा की बात है, हो सकता है यह सब विज्ञान में न भी हो। अध्यात्म में तो परम लक्ष्य मोक्ष है, उसके लिए साधना करें।
राग-द्वेष मुक्त हो वीतरागता प्राप्त करना बड़ी बात है। साधु के पाँच महाव्रत बताए गए हैं। छठा व्रत रात्रि भोजन विरमण है। साधु के लिए करोड़ रुपये का हीरा कोड़ी के समान है। हम तो अकिंचन फकीर है। महाव्रतों का बड़ा महत्त्व है, इनका प्रभाव आगे तक रह सकता है। जैन दर्शन के अनुसार आत्मा जब मोक्ष में जाती है, तो उसे एक सैकेंड भी नहीं लगता। एक समय लगता है। जबकि मोक्ष करोड़ों मील दूर है। अध्यात्म की बात अगर विज्ञान स्वीकार कर लेता है, तो उस बात का और महत्त्व हो सकता है।
कच्छी समाज की साध्वी पद्मिनी बाई ने अपनी भावना अभिव्यक्त करते हुए कहा कि जैसे कमल कीचड़ में पैदा होकर भी अलिप्त रहता है, वैसे ही आचार्य महाश्रमण जी भी अपने इतने बड़े संघ में रहकर अलिप्त रहते हैं। आप भारंड पक्षी की तरह अप्रमत्त हैं। आपने आगम की सूक्तियाँ अपने जीवन में साकार की हैं। स्थानीय विधायक राम कदम ने कहा कि वर्तमान में भगवान को देखना है तो आचार्यश्री महाश्रमण को देख लें। ब्रह्मकुमार राजयोगी निकुंज भाई ने कहा कि गुरुदेव की सौम्य मुद्रा को देखकर मुझे आनंद की अनुभूति होती है।
प्रोफेसर-वैज्ञानिक के0पी0 मिश्रा ने कहा कि कल मैंने आचार्यश्री के दर्शन किए थे, उसका मुझ पर प्रभाव है। आपके सान्निध्य से मेरी वैज्ञानिकता भी उत्कृष्ट हो जाती है। आपसे बात की तो लगता है कि आप अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक हैं। मैं भी अध्यात्म में विज्ञान ढूँढ़ रहा हूँ। अध्यात्म और विज्ञान के मिलन से नया सृजन होगा। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया कि आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता का समागम होने से ही नया सृजन हो सकता है। व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, स्थानीय सभा अध्यक्ष शांतिलाल बाफना, स्थानकवासी समाज से मुकेश भाई ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कन्या मंडल, किशोर मंडल ने पृथक्-पृथक् प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।