पूर्व कर्मों की निर्जरा कर पाएँ जीवन का सबसे बड़ा लाभ : आचार्यश्री महाश्रमण
घाटकोपर, 4 जनवरी, 2024
जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि प्रश्न है कि निर्वाण-मोक्ष को कौन प्राप्त कर सकता है। मोक्ष और निर्वाण आध्यात्मिक साधना का परम लक्ष्य होता है। आदमी जीवन जीता है, इस जीवन का कभी भी कुछ भी हो सकता है। ऐसा अनिश्चयमय जीवन है, फिर जीवन जीने का लाभ क्या है? जीवन जीने के लिए कितना ज्यादा परिश्रम करना होता है। फिर हम जीवन क्यों जीएँ? जीवन जीने का सबसे बड़ा लाभ यह हो सकता है कि पूर्व कर्मों का निर्जरा के द्वारा क्षय और संवर की साधना। वह इस मनुष्य जीवन में बहुत अच्छी हो सकती है। पूर्व कर्मों का संपूर्णतया क्षय हो जाने पर निर्वाण या मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। वर्तमान जीवन के बाद यहाँ तो मोक्ष न मिले पर आगे जल्दी मिल जाए या मोक्ष की दूरी कम हो जाए। जीवन का अंतिम लक्ष्य निर्वाण-मोक्ष होना चाहिए।
निर्वाण हमारा लक्ष्य है, तो फिर निर्वाण किसे मिल सकता है? जिसके जीवन में धर्म है, वह व्यक्ति निर्वाण को प्राप्त कर सकता है। जिसका चित्त शुद्ध होता है, उसके जीवन में धर्म ठहरता है। जो ऋजुभूत-सरल होता है, उसके शोधि-शुद्धता होती है। किसी से भी अगर अनाचार-गलती हो जाए, प्रमाद हो जाए उसकी प्रायश्चित से शुद्धि हो जाए। डॉक्टर से बीमारी और प्रायश्चितदाता से गलती कभी नहीं छिपानी चाहिए। ऋजुता के साथ व्यक्ति अपने अधिकृत व्यक्ति से अपनी गलती, दोष, प्रमाद बता दें और वे जो प्रायश्चित बता दे, उसे सरलता से स्वीकार कर लें तो शुद्धता हो सकती है। गलती का भार आगे साथ में न ले जाएँ। गलती एक प्रकार की गंदगी है, इससे आत्मा मलिन रहती है। प्रायश्चित रूपी स्नान से आत्मा का शुद्धिकरण कर लेना चाहिए।
सरलता है, तो ईमानदारी रह सकती है। किसी पर झूठा आरोप न लगाएँ यह भी एक पाप है। गृहस्थ में भी जितना पापाचार से बचा जाए बचने का प्रयास करें। धर्म का महत्त्वपूर्ण सूत्र है कि जीवन में सरलता रहे। माया सरलता का विपरीत तत्त्व है, आर्जव भाव से माया को क्षीण करें। माया मैत्री का नाश करने वाली है। मायाचार करने वाला तिर्यंच गति का बंध कर सकता है। वर्तमान में जो सुख प्राप्त है, वो तो पूर्व की पुण्याई भोग रहे हैं। आगे के लिए भी कुछ धर्म करें। धर्म ही साथ में जाने वाला है। हम धर्म का टिफिन तैयार करने का प्रयास करें। रोज धर्म की पेटी में थोड़ी-थोड़ी संपत्ति डालते जाएँ। धन के साथ धर्म का भी चिंतन होता रहे। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मनोहर गोखरू ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेममं, कन्या मंडल, उपासक श्रेणी, अणुव्रत समिति ने गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।