व्यक्ति अपने आप का अभिनिग्रह करे : आचार्यश्री महाश्रमण
मुलुंड, 14 जनवरी, 2024
अध्यात्म के अलौकिक पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी दो दिवसीय प्रवास हेतु वृहत्तर मुंबई के उपनगर मुलुंड में पधारे। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने प्रेरणा पाथेय में फरमाया कि हमारी इस दुनिया में सुख भी मिलता है तो दुःख भी प्राप्त हो जाते हैं। आदमी कभी दुःखी बन जाता है, तो कभी सुख का अनुभव भी करता है। दुःख दो प्रकार का होता है-जरा, शोक। जो शारीरिक कष्ट होते हैं, उसे जरा कहा जा सकता है। जो मानसिक संताप-दुःख होता है, वह शोक है।
आदमी दुःख से डरता भी है। भगवान महावीर ने अपने शिष्यों से पूछा कि आयुष्मन् श्रमणो! प्राणियों को किससे भय होता है? संभवतः श्रमण उत्तर नहीं दे पाए तो भगवान ने फरमाया कि ये प्राणी दुःख से भय खाते हैं। दुःख प्राणी ने स्वयं की आत्मा से ही पैदा किया है। प्रमाद से प्राणी दुःख पैदा करता है। अप्रमाद की साधना से दुखों का निर्जरण भी होता है। शारीरिक कष्टों से भी आदमी डर सकता है। आगम में कहा गया है कि जन्म, बुढ़ापा, रोग और मृत्यु भी दुःख है। संसार में अनेक दुःख हैं, जहाँ प्राणी दुःख पाते हैं।
इन दुखों से छुटकारा पाने का उपाय है कि पुरुष! अपने आपका अभिनिग्रह (संयम) करो। इस प्रकार तुम दुःख से मुक्ति पा सकते हो। अपने आप पर संयम-अनुशासन करो। हम वाणी का संयम करें, झूठ और कटु न बोलें। मन पर भी अनुशासन रखें। चिंतन सकारात्मक रहे। चिंतन से भी व्यक्ति सुखी या दुखी बन सकता है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने फरमाया था कि समस्या और मानसिक दुःख एक नहीं है। बाहर समस्या होने पर भी आदमी शांति में रह सकता है। मन से दुखी न बनें, समता-धैर्य रखें। गृहस्थ जीवन में समस्याएँ अनेक प्रकार की आ सकती हैं, पर समस्या का समाधान किया जा सकता है। ‘चिंता नहीं चिंतन करो’, व्यथा नहीं व्यवस्था करो और प्रशस्ति नहीं प्रस्तुति करो।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि यहाँ जनता आचार्यप्रवर से अमृत पाने के लिए इकट्ठी हुई है। हर व्यक्ति अमृत पा अमृत बनना चाहता है। गुरु दर्शन ही अमृत है। अमृत वही व्यक्ति दे सकता है, जो लोक-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत होता है। जो लोक-कल्याण की भावना रखता है, वो व्यक्ति श्रेष्ठता को प्राप्त करता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में मुलुंड सभाध्यक्ष चुन्नीलाल सिंघवी, तेरापंथ महिला मंडल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।