हम पाप-कर्म से बचने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हम पाप-कर्म से बचने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

भांडुप, 12 जनवरी, 2024
अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज अपनी धवल सेना के साथ मुंबई के उपनगर भांडुप पधारे। पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए परमपूज्य ने फरमाया कि आदमी दुनिया में अकेला जन्म लेता है और अकेला ही जीवन जीकर एक दिन चला जाता है। अकेला ही कर्मों का संचय करता है और अकेला ही कृत कर्मों का फल भोगता है। मैं अकेला हूँ यह निश्चय की भाषा हो सकती है। व्यवहार में अनेक लोग साथ में रहते हैं। एक-दूसरे के साथ खड़े होते हैं। सहयोग की बात भी आपस में होती है। तत्त्वज्ञान का तत्त्वार्थ सूत्र एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। दिगंबर परंपरा में भी वह मान्य है। इस ग्रंथ में ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’ की बात बताई गई है। छः द्रव्य सबके लिए कितने उपयोगी हैं। जीव एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। मनुष्य-मनुष्य का भी सहयोग करता है। प्राणी प्राणी के काम आता है।
हमें जीवन में अनेकों का सहयोग मिलता है। हम अकेले भी हैं और समूह में बहुत भी हैं। यह सापेक्ष बात हो सकती है। ‘कुण बेटो? कुण बाप? करणी आपो आप’ इस संदर्भ में जीव अकेला है। यह स्थूल शरीर भी साथ नहीं जाता है। साथ में जाने वाले तो तेजस शरीर और कार्मण शरीर अगले जन्म में जाने वाले हैं। मोक्ष जाने में तो वे भी साथ नहीं रहते। मोक्ष में अनंत सिद्ध साथ-साथ रहने वाले हैं, पर सबका अपना-अपना अस्तित्व है। कोई सिद्ध न तो किसी का सहयोग करता है, न कोई किसी से सहयोग चाहता है। हमारा धर्म, हमारी साधना, हमारी आत्मा हमारी है और कोई किसी का नहीं है। इस मनुष्य जीवन में भला काम करें, धर्म की साधना, अध्यात्म की आराधना करें। साथ में दूसरों की जितनी धार्मिक-आध्यात्मिक सेवा करें। अच्छे कर्म करेंगे तो अच्छे फल मिल सकेंगे। व्यवहार की भाषा में एक अपेक्षा से हम सब एक हैं, पर निश्चय नय में मैं अकेला ही हूँ। इसलिए हम पाप-कर्म से बचने का प्रयास करें।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जैन परंपरा में अनेक प्रभावक आचार्य हुए हैं, उन्होंने अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व के द्वारा धर्म की प्रभावना की है। अपने कार्यों से जैन धर्म का उद्योत किया है। आचार्य यशोविजय जी ने कहा है कि तुम अपनी प्रवृत्तियों के प्रति जागरूक बनो। स्व-दर्शन करो तो धीरे-धीरे समता को प्राप्त कर लोगे। दूसरों के दोषों को मत देखों वहाँ मूक-वधिक बन जाओ। पूज्यप्रवर स्थितप्रज्ञता की स्थिति में आगे बढ़ रहे हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत में भांडुप सभाध्यक्ष मनोज बोथरा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेममं की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।