अवबोध
ु मंत्री मुनि सुमेरमल ‘लाडनूं’ ु
(2) दर्शन (सम्यक्त्व) मार्ग
प्रश्न-16 : सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् जीव संसार में कब तक परिभ्रमण कर सकता है?
उत्तर : सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् जीव उसी भव में मुक्त हो सकता है। अधिकतम कुछ कम अर्धपुद्गल परावर्तन तक परिभ्रमण कर सकता है। क्षायिक सम्यक्त्वी अधिकतम तीन भव के बाद अवश्य मोक्षगामी होता है।
प्रश्न-17 : क्या सम्यक्त्वी परित संसारी होता है?
उत्तर : सम्यक्त्वी परित और अपरित दोनों होते हैं?
प्रश्न-18 : सम्यक्त्वी मर कर कहाँ जाता है?
उत्तर : सम्यक्त्वी दो प्रकार के होते हैं(1) औदारिक शरीरी, (2) वैक्रिय शरीरी। औदारिक शरीरी अर्थात् मनुष्य और तिर्यंच। सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद जब ये आयुष्य का बंध करते हैं, तो वे निश्चित ही देवगति में, उसमें भी केवल वैमानिक देवलोक में जाते हैं। वैक्रिय शरीरीनारक और देव। सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद केवल मनुष्य गति का ही आयुष्य बंध करते हैं।
सम्यक्त्व प्राप्ति से पूर्व यदि आयुष्य का बंध हो जाए तो औदारिक शरीरी चारों गतियों में जा सकते हैं। वैक्रिय शरीरी केवल मनुष्य और तिर्यंच गति में जाते हैं।
प्रश्न-19 : क्या सम्यक्त्वी के अकाम निर्जरा होती है?
उत्तर : सम्यक्त्वी के सकाम निर्जरा होती है। कभी परवशता या स्थिति विशेष में अकाम निर्जरा हो सकती है।
प्रश्न-20 : औपशमिक सम्यक्त्वी क्या क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो सकता है?
उत्तर : औपशमिक सम्यक्त्वी क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ नहीं हो सकता, उपशम श्रेणी पर आरूढ़ हो सकता है।