सम्यक्त्व प्राप्ति के लिए नव तत्त्वों को करें आत्मसात : आचार्यश्री महाश्रमण
ठाणा, 19 जनवरी, 2024
पंचदिवसीय ठाणा प्रवास के चौथे दिन तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी की अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि एक प्रश्न हो सकता है कि यह सृष्टि, यह जगत क्या है? इस प्रश्न के उत्तर में जैन दर्शन में बताया गया है कि यह लोग षट्-द्रव्यात्मक है। छः द्रव्यों का समवाय यह जगत है। इस दुनिया में आकाश, काल, पुद्गल, जीव, धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय नाम के द्रव्य हैं। जो कुछ है, वह इन छः द्रव्यों में समाविष्ट हो सकता है। दूसरा प्रश्न है कि हमें परम सुख-मोक्ष कैसे मिले। हमें सर्व दुखों से छुटकारा व शाश्वत सुख चाहिए।
नव तत्त्व है-जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष इनको समझ लो और कल्याणकारी रास्ते पर चलो तो तुम सर्वदुःख मुक्ति को प्राप्त हो सकोगे। जैन दर्शन में नव तत्त्वों पर सम्यक् श्रद्धा होना सम्यक्त्व होता है। आत्मा के कर्मों का बंध होता है, वह पुण्य या पाप के रूप में फल देता है। पुण्य-पाप का बंध आश्रव के द्वारा होता है। पाँच आश्रवों से कर्मों का आकर्षण होता है, बंध होता है। जीव के कर्म कोई न लगे, इसका उपाय है-संवर करो। संवर से कर्म आने के द्वार बंद हो जाते हैं। पूर्वार्जित कर्म को दूर करने का उपाय है-निर्जरा। तपस्या के द्वारा पूर्व में बंधेे कर्मों का निर्जरण किया जा सकता है, आत्मा निर्मल हो सकती है। संवर और निर्जरा की साधना से जो अंतिम परिणति आएगी वह है-मोक्ष। सर्व पाप क्षय होने से आत्मा स्व स्वरूप में स्थित हो जाएगी। सर्वदुःख मुक्ति की स्थिति हमेशा के लिए हो जाएगी।
छः द्रव्यों में नव तत्त्व समा सकते हैं, नव तत्त्व में छः द्रव्य समाविष्ट हो सकते हैं, पर दोनों की पृष्ठभूमि अलग-अलग है। जहाँ दुनिया के बारे में बताना होता है, वहाँ छः द्रव्यों को समझाया जाता है, यह अस्तित्ववाद है। जहाँ आत्म-साधना की बात बतानी है, वहाँ नव तत्त्वों को समझना आवश्यक है। दुनिया में अनेक ज्ञान के विषय हैं पर ये नव तत्त्व अध्यात्म विद्या के प्रश्न हैं। सम्यक्त्व के लिए नव तत्त्वों को अच्छी तरह आत्मसात् करना जरूरी है। साधना करने से पहले उसकी जानकारी होनी चाहिए। सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन के बिना सम्यक् चारित्र भी नहीं हो सकता। सम्यक्त्व बहुत बड़ी चीज है, परम रत्न, परम मित्र, परम बंधु, और परम लाभ सम्यक्त्व ही है, जो वीतराग प्रभु ने प्रवेदित ने किया है, वही सत्य है।
हमें तो सत्य और मोक्ष चाहिए, वो मार्ग बताने वाले मिल जाएँ, हमें वे चाहिए। फिर वेशभूषा, पंथ या संत कोई भी हो। राग-द्वेष मुक्ति ही मुक्ति है। हम कषायमंदता की साधना करें, तत्त्व बोध को ग्रहण करने का प्रयास करें। हमारा सम्यक्त्व पुष्ट रहे, हमें क्षायिक, सम्यक्त्व प्राप्त हो, यथार्थ पर श्रद्धा रहे और हम सर्वदुःख मुक्ति की ओर आगे बढ़ने का प्रयास करें। कोपरखेरणा के श्रावकों द्वारा दीक्षा महोत्सव के बैनर का अनावरण पूज्यप्रवर की सन्निधि में हुआ। सांसद डॉ0 संजीव नायक ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुनि आलोक कुमार जी ने गुरुदर्शन कर अपनी भावना अभिव्यक्त की। मुनि लक्ष्य कुमार जी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।