पाँच महाव्रत बहुत बड़ी संपदा और बहुत बड़ा त्याग है : आर्चाश्री महाश्रमण
ठाणा, 17 जनवरी, 2024
विश्व शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि साधु के पाँच महाव्रत बताए गए हैं-सर्व प्राणातिपात विरमण, सर्व मृषावाद विरमण, सर्व अदत्तादान विरमण, सर्व मैथुन्य विरमण और सर्व परिग्रह विरमण। यह भी बताया गया है कि जैन शासन में, भगवान महावीर के इस शासन में ये पाँच महाव्रत उल्लेखित है तो भगवान पार्श्व व पूर्व के 21 तीर्थंकर के समय चातुर्याम धर्म निरुपित था। भगवान ऋषभ और भगवान महावीर ने पंचमहाव्रत रूप धर्म साधुओं के लिए निरूपित किए थे।
पाँच महाव्रत बहुत बड़ी संपदा और बहुत बड़ा त्याग है। संपदा दो प्रकार की बताई गई है-एक तो धन या सत्ता के रूप में भौतिक संपदा, दूसरी आध्यात्मिक संपदा। आगम साहित्य में आठ गणी संपदाएँ बताई गई हैं। इनमें पहली संपदा है-आचार संपदा। आर्थिक संपदा के सामने पाँच महाव्रतों की संपदा बहुत उत्कृष्ट होती है। महाव्रत की संपदा का प्रभाव आगे भी हो सकता है। वह परम सुख देने वाली संपदा है।
गणी संपदा में दूसरी श्रुत संपदा है। फिर शरीर संपदा, वाणी संपदा, वाचन संपदा, प्रयोग संपदा, मति संपदा। संग्रह परिज्ञा गृहस्थों के भौतिक संपदा के साथ आध्यात्मिक संपदा भी हो। धर्म की संपदा वृद्धिंगत रहे, यह काम्य है। पूज्यप्रवर के स्वागत में पूर्व सांसद पुष्पराज जैन, विधायक केशाराम चौधरी, भिक्षु महाप्रज्ञ ट्रस्ट के अध्यक्ष निर्मल श्रीश्रीमाल, जितेंद्र बरलोटा, विजयराज सोलंकी, उपासक श्रेणी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। किशोर मंडल द्वारा आचार्य भिक्षु के तीन दृष्टांत एवं कन्या मंडल द्वारा ‘प्राणी समकित किण विध आई रे’ पर सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।