प्रण के लिए प्राणों को भी छोड़ दें : आचार्यश्री महाश्रमण
पूज्यप्रवर ने सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र की निर्मलता की दी प्रेरणा
डोंबीवली, 27 जनवरी, 2024
वर्धमान महोत्सव के दूसरे दिन वर्तमान के वर्धमान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने वर्धमानता की प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि नाणेणं दंसणेणं च, चरित्तेण तहेव य। खंतीए, मुत्तीए, वड्ढमानो भवाहि य।। यह श्लोक वर्धमानता की प्रेरणा देने वाला हो सकता है। वर्धमान महोत्सव का एक आधार-भूत श्लोक, एक ध्येय सूत्र वाला श्लोक संभवतः इसे माना जा सकता है। ज्ञान के क्षेत्र में हमें वर्धमान रहना चाहिए। ज्ञान के लिए प्रतिभा भी अपेक्षित होती है। प्रतिभा एक प्रकार की शक्ति है, लब्धि है, उसका उपयोग ज्ञानार्जन में करें। सम्यक् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप मोक्ष मार्ग है। दर्शन का अपना महत्त्व है। जिस कार्य के प्रति एक निष्ठा सघन हो जाती है, आकर्षण गहरा हो जाता है, आस्था पुष्ट हो जाती है, श्रद्धा समीचीन हो जाती है, फिर उस कार्य को करना आसान हो सकता है।
ज्ञान से हमने जान लिया पर जब तक श्रद्धा न हो जाए तब तक वह जीवन में कितना आ सकता है? सम्यक् आचार के लिए दर्शन बहुत जरूरी है। हमारी आस्था आत्मा के प्रति है कि आत्मा का कल्याण करना है। ‘मर पूरा देस्यां, आत्मा रा कारज सारसां’-भले मृत्यु को प्राप्त हो जाएँ, पर आत्मसाधना करेंगे, आत्मा का प्रयोजन सिद्ध करेंगे। आस्था है तो प्रण के लिए आदमी प्राणों को छोड़ दे। आस्था नहीं है तो प्रण भी छूट सकता है। सम्यक् दर्शन निर्मल रहे। वही सत्य है, वह सत्य ही है, जो जिनेश्वरों ने प्रवेदित किया है-यह सम्यक् दर्शन का एक सूत्र है। सम्यक्त्व के लिए कषायमंदता की साधना बनी रहे, गुस्सा, अहंकार, माया, लोभ ये प्रतनु हो जाएँ। तत्त्व को समझने का प्रयास करें। तत्त्व को अनाग्रह भाव से ग्रहण करने का प्रयास हो तो सम्यक् दर्शन मजबूती को प्राप्त हो सकता है। दर्शन श्रद्धा का एक फलित आचार की निर्मलता हो सकती है। चारित्र की सीधी सी परिभाषा है कि समभाव चारित्र है। चारित्र के मूल में समता है, उससे अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ये शाखाएँ निकलती हैं, यह पंचशाखी चारित्र वृक्ष है। चारित्रात्माएँ चारित्र की निर्मलता का प्रयास रखें।
प्रतिक्रमण और प्रायश्चित वर्तमान में दो उपाय हैं, जिनसे चारित्र की निर्मलता रह सकती है। प्रतिक्रमण और प्रायश्चित समय पर हो जाए। चउवीसत्थव भी एक प्रकार का प्रायश्चित प्रतिलेखन यथाविधि होता है नहीं, उपकरण बिना प्रतिलेखन नहीं रह जाए, उसके प्रति जागरूकता रहनी चाहिए। ईर्या समिति में भी जागरूक रहे, ईर्या समिति में भी जागरूक रहें, जीवों के प्रति दया, अहिंसा की भावना रहे। ईर्या समिति बहुत अच्छी साधना है, भाव क्रिया युक्त, ईर्या समिति युक्त चलने का प्रयास करें। भाषा समिति का भी ध्यान रखें कि कोई कटु वचन न निकल जाए, अयथार्थ भाषा भी नहीं निकले। एषणा समिति में आसक्ति बाधक न बन जाए अन्य समितियों-गुप्तियों में भी हमारी जागरूकता रहे। आसक्ति से दोषों का सेवन न हो जाए। हम जीवन में सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र की साधना जागरूकता से करते रहें।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्धमान महावीर के शासन में वर्धमान के प्रतिनिधि के सान्निध्य में त्रिदिवसीय वर्धमान महोत्सव का आयोजन हो रहा है। वर्धमानता सबको प्रिय होती है। तेरापंथ धर्मसंघ एक वर्धमान धर्मसंघ है। संख्या के साथ गुणवत्ता भी वर्धमान होती है, तो उस धर्मसंघ या संगठन की तेजस्विता प्रखर होती जाती है। हमारा धर्मसंघ तीन बिंदुओं से और वर्धमान बन सकता है, वे हैं-वैराग्य, श्रम और सहिष्णुता।
जो व्यक्ति वैराग्य के रंग से रंजित रहता है उसके चारित्रिक पर्यव भी निर्मल बन जाते हैं, उसके मन में पापभीरूता रहती है, अनुकंपा का भाव रहता है। दूसरा बिंदु है-श्रम। आलस्य मनुष्य का बहुत बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति परिश्रम करता है उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है और वह धर्मसंघ की, जिन शासन की प्रभावना भी कर सकता है। श्रमण का तो अर्थ ही है कि जो श्रमशील हो, पुरुषार्थी हो। श्रमशील व्यक्ति उपयोगी बन जाता है। तीसरा बिंदु है-अहंकार, धैर्य की कमी और क्रोध की प्रखरता असहिष्णुता का कारण बनते हैं। हम सहनशीलता की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करें।
स्थानकवासी संप्रदाय से मुनि जयेशचंद्र जी एवं मुनि सुभाषचंद्र जी व कई साध्वियाँ पूज्यप्रवर की सन्निधि में पधारे। पूज्यप्रवर का उनसे अति संक्षिप्त वार्तालाप हुआ।
साध्वीवृंद ने वर्धमान महोत्सव पर गीत की प्रस्तुति दी। महिला मंडल अध्यक्षा सीमा कोठारी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने सुंदर प्रस्तुति कर 108 गुणों की माला पूज्यप्रवर को समर्पित की। ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं, कन्या मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा व तेयुप ने समूह गीत की प्रस्तुति दी। अणुव्रत समिति की प्रस्तुति हुई। मनोहर गोखरू ने अपनी भावना व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।