अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है ज्ञान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है ज्ञान : आचार्यश्री महाश्रमण

अम्बरनाथ, 25 जनवरी, 2024
अणुव्रत अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः विहार कर अम्बरनाथ पधारे। पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए महातपस्वी ने फरमाया कि जैन वाङ्मय में एक ग्रंथ है तत्त्वार्थाभिगम सूत्र। उसका सूत्र हैµसम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन और सम्यक् चारित्र यह मोक्ष मार्ग है। मोक्ष के लिए सम्यक् चारित्र का महत्त्व है तो सम्यक् ज्ञान-दर्शन का भी महत्त्व है। हमारे जीवन में सम्यक् ज्ञान का बड़ा महत्त्व है। पहले ज्ञान फिर दया या आचार। ज्ञान के साथ आचार भी हो। विद्या और चरण से मोक्ष मिलता है। ज्ञान एक पवित्र तत्त्व है। ज्ञान सम्यक् है तो आचरण भी सम्यक् हो सकता है। ज्ञान प्रकाश करने वाला है। अंधकार में प्रकाश का महत्त्व होता है। कहा गया हैµअंधकार से मुझे ज्ञान की ओर ले चलो, असत्य से मुझे सत्य की ओर ले चलो। मृत्यु से मुझे अमरत्व को प्राप्त कराओ। ज्ञान अंधकार से ज्ञानात्मक प्रकाश की ओर ले जाने वाला होता है।
विद्याओं में अध्यात्म विद्या का अपना महत्त्व है। जहाँ आत्मा, स्वर्ग, नरक आदि सिद्धांतों का प्रतिपादन है। स्कूलों, कॉलेजों में विद्यार्थियों को भौतिक विद्या के साथ आध्यात्मिक विद्या भी ज्ञात होती रहे। अध्यात्म विद्या के अनुरूप थोड़ा आचरण भी हो जाए। ज्ञान जीवन की एक उपलब्धि है, पर आचरण कैसा है वह भी महत्त्वपूर्ण पक्ष है। विद्या संस्थानों में संस्कार युक्त शिक्षा हो। ज्ञान और आचारण दोनों जीवन में परिपूर्ण हो। अगर एक पक्ष भी कमजोर है, तो बहुत बड़ी कमी रह जाती है। यह संसार एक अटवी है। इस अटवी में किसी के पास ज्ञान तो है पर आचार नहीं है, किसी के पास आचार है पर ज्ञान नहीं है, ऐसे प्राणी इस संसार में ही रह जाते हैं। किसी में सम्यक् ज्ञान और आचार दोनों का योग होता है तो वे इस संसार-अटवी को पार कर मोक्ष भी प्राप्त कर सकते हैं।
आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आंदोलन चलाया था कि आदमी के जीवन में अच्छाइयाँ आएँ। छोटे-छोटे अच्छे संकल्पों की व्यवस्था की थी। आचार्य महाप्रज्ञ जी प्रेक्षाध्यान कराते थे, इससे भीतर से रूपांतरण हो सकता है, हमारे संस्कार, चेतना अच्छे बन सकते हैं। इस दुर्लभ मानव जीवन को हमने प्राप्त कर लिया है। इसका हम बढ़िया उपयोग कर मानव जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करें। जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रहे। समाज हो या राजनीति सब जगह अच्छे सिद्धांत रहें। हमें आगे के, जीवन के बाद के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए। आत्मा तो अमर है, आत्मा का कल्याण हो। जो साधनारत साधु-संत हैं, यह दुनिया के लिए अच्छी बात है। साधु तो चलते-फिरते तीर्थ होते हैं। संतों की थोड़ी सी वाणी सद्ज्ञान प्राप्त कराने वाली हो सकती है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आज अम्बरनाथ में अमृत पुरुष का शुभागमन हुआ है। अमृत का निवास भगवान के भक्तों, महान पुरुषों के कंठ में होता है। कितने लोग आचार्यप्रवर से अमृत का पान करने आते हैं। आचार्यप्रवर के प्रति लोगों का आकर्षण है। आचार्यप्रवर लोगों की खोट लेते हैं। जिनके भीतर पवित्रता होती है, वही दूसरों की खोट ले सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में विधायक बालाजी किलेकर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेममं व तेयुप, सभाध्यक्ष हितेश कोठारी, जैन समाज वासुपूज्य महिला मंडल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।