दुर्लभ मनुष्य जीवन को पाकर प्रमाद न करें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुर्लभ मनुष्य जीवन को पाकर प्रमाद न करें : आचार्यश्री महाश्रमण

नेरुल, 3 फरवरी, 2024
नेरुल प्रवास के दूसरे दिन युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि उत्तराध्ययन में कहा गया है कि मनुष्य भव दुर्लभ है। लंबे काल तक प्राणियों को मनुष्य जन्म सुलभ नहीं होता है। कर्मों का अपना विपाक है। इस दुर्लभता को जानकर हम यह चिंतन करें कि जो दुर्लभ बताया है, वो हमारे लिए अभी उपलब्ध है, हमें प्राप्त है। जो अनंत प्राणियों को अब तक नहीं मिल पाया है वह मनुष्य भव हमें प्राप्त है। इसलिए भगवान महावीर ने गौतम के नाम से संदेश दिया कि समय मात्र भी प्रमाद मत करो। मनुष्य जन्म के अवसर को पाकर अब प्रमाद में मत रहो।
यह मनुष्य जन्म दुर्लभ भी है और विशिष्ट भी है। पाँच इंद्रियाँ इसमें प्राप्त होती हैं। यही वह जीवन है जिसमें प्राणी साधना करके मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। इस मनुष्य जीवन का लाभ उठाने के लिए पहला उपाय बताया गया- वीतराग-जिनेश्वर भगवान की भक्ति करें, स्तुति, स्मरण और भावात्मक रमण करें। जेसे बच्चे बड़ों का सहारा लेकर आगे बढ़ते हैं, लता आलंबन से विकास करती हैं, कम विकसित को ज्यादा विकसित का सहारा चाहिए, वैसे ही हम भी साधना के क्षेत्र में आरोहण करने के लिए वीतराग भगवान की स्तुति करें, भक्ति करें तो हममें भी वीतरागता के कुछ अंश अवतरित हो सकते हैं। श्रीमद् जयाचार्य का चौबीसी ग्रंथ जिनेंद्र भक्ति का अच्छा माध्यम है, उसका स्वाध्याय किया जा सकता है।
दूसरा उपाय बताया गया कि गुरु की पर्युपासना करो। महाविदेह क्षेत्र में तो हमेशा कम से कम बीस तीर्थंकर रहते हैं। दुनिया का सौभाग्य है कि ये दुनिया तीर्थंकरों से खाली नहीं होती, कम से कम 20 तीर्थंकर सदा इस संसार में साधना करते हैं। पर भरत क्षेत्र में अभी कोई तीर्थंकर विद्यमान नहीं है, तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्य विद्यमान हैं, उनकी उपासना-भक्ति करो, उनके नैकट्य का लाभ लो।
तीसरा उपाय है-सत्वानुकंपा। प्राणियों के प्रति अनुकंपा, दया का भाव रखो। किसी को तकलीफ या कष्ट न हो, हो सके तो आध्यात्मिक-चित्त समाधि पहुँचाने का प्रयास करो। चारित्रात्मा निर्वद्य वैय्यावृत्य का कार्य करें, गृहस्थ दूसरे गृहस्थ को धार्मिक ज्ञान देने का प्रयास करें।
चौथा उपाय बताया गया है-सुपात्र दान। शुद्ध साधु को दान देना अच्छी बात है। श्रावक भोजन करने से पहले मन में भावना भाएँ कि कोई साधु आ जाए, मुझे सुपात्र दान का अवसर मिल जाए।
पाँचवाँ उपाय है-गुणानुराग। गुणों से प्रेम करें, गुणों की पूजा करें, किसी से भी ईर्ष्या नहीं रखें।
छठा उपाय है-आगम का श्रवण करना। चतुरेंद्रिय तक के जीवों को तो कान ही नहीं मिलते हैं, पंचेंद्रिय जीवों में भी कुछ कान होने पर भी सुन नहीं पाते हैं। जिसे कान मिले हैं और सुनने की शक्ति भी प्राप्त है तो आगम वाणी, उपदेशों को सुनने का प्रयास करें। आगम वाणी कानों में पड़ती है तो कल्याणकारी हो सकती है। संतों की वाणी सुननी चाहिए और जितना हो सके स्वीकार करने का प्रयास भी करना चाहिए। जिस प्रकार ग्राहक बिना पैसा माल नहीं खरीद सकता उसी प्रकार सामर्थ्य का धन नहीं हो तो संतों की वाणी भी ग्रहण नहीं की जा सकती। आगम एक प्रकार की दुकान है, साधु दुकानदार हैं, गृहस्थ ग्राहक बनकर आगम वाणी को ग्रहण कर सकते हैं। भीतर का भाव जाग जाए तो बड़ा नियम ले सकते हैं। इस प्रकार मनुष्य जन्म का लाभ उठाने का प्रयास करें, यह जन्म हमें मिला हुआ है इसका आत्म-कल्याण में उपयोग करने का प्रयास करें।
ओरलेंडों एवं न्यूजर्सी की यात्रा संपन्न कर गुरु चरणों में पहुँची समणी जिनप्रज्ञाजी एवं समणी अमलप्रज्ञा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के स्वागत में प्रवास व्यवस्था समिति के महामंत्री महेश बाफना, तेममं की अध्यक्षा प्रियंका सिंघवी, पूर्व सांसद संजीव नाईक, जीएसटी कमिश्नर राजेश कोठारी ने उद्गार व्यक्त किए। तेममं के सदस्यों में गीत का संगान किया। ज्ञानशाला, किशोर मंडल एवं कन्या मंडल की प्रस्तुति हुई। मराठी स्कूल के बच्चों ने अणुव्रत गीत एवं स्कूल की विद्यार्थी स्नेहा सावंत ने नशामुक्ति पर प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।