अध्यात्म साधना का महत्त्वपूर्ण सूत्र है इंद्रिय संयम : आचार्यश्री महाश्रमण
नवी मुंबई स्तरीय नागरिक अभिनंदन का हुआ आयोजन
कोपरखैरना, मुंबई, 1 फरवरी, 2024
तीर्थंकर के प्रतिनिधि, शांतिदूत परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कोपरखैरना के द्वितीय दिवस आगमवाणी की वर्षा करते हुए फरमाया कि मनुष्य एक पंचेन्द्रिय प्राणी है। हमारी दुनिया में एकेंद्रिय प्राणी भी होते हैं, जिनके केवल एक ही इंद्रियµस्पर्शनेंद्रिय होती है, जैसे पृथ्वीकाय, अप्काय आदि पाँच स्थावर काय के जीव। द्विइंद्रिय प्राणियों के स्पर्शनेंद्रिय के साथ रसनेंद्रिय भी होती है, जैसे लट आदि। त्रिइंद्रिय प्राणियों के स्पर्शनेंद्रिय, रसनेंद्रिय के बाद घ्राणेंद्रिय भी होती है, जैसे कीड़े-मकोड़े आदि। चतुरेंद्रिय प्राणियों के पिछली तीन इंद्रियों के अतिरिक्त चक्षु इंद्रिय और होती है, जैसे मक्खी-मच्छर आदि। पंचेंद्रिय प्राणियों के शेष चार इंद्रियों के अतिरिक्त श्रोतेंद्रिय भी होती है। गाय, घोड़ा हाथी आदि तिर्यंच, मनुष्य, देवता और नारक भी पंचेंद्रिय होते हैं। पंचेंद्रिय प्राणी होना विकास का द्योतक है। पाँच इंद्रियाँ जो हमें प्राप्त हैं, ये ज्ञान प्राप्ति की माध्यम हैं। इन पाँचों इंद्रियों में भी श्रोत्र और चक्षु के द्वारा हम कितना ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। इंद्रियाँ ज्ञान की साधना भी बनती हैं और पाप में भी सहयाक बन सकती हैं। भावेंद्रियाँ तो विशुद्ध क्षयोपशम भाव हैं परंतु जब राग-द्वेष के भाव जुड़ जाते हैं तो इंद्रियाँ पाप कर्म के बंधन में सहायक बन जाती है।
इंद्रियों का हम सदुपयोग कर सकते हैं तो दुरुपयोग भी किया जा सकता हो। कान से आर्ष वाणी, संत वाणी का, भजन-गीत का श्रवण भी किया जा सकता है। श्रीमद् जयाचार्य द्वारा रचित चौबीसी जैसे भक्ति गीतों का श्रवण भी किया जा सकता है और संगान भी किया जा सकता है। कान का उपयोग हम अच्छा सुनने में करें तो अच्छी सामग्री कान के माध्यम से भीतर में जा सकती है जिससे हमारी भावनात्मक शुद्धता का विकास हो सकता है। कोई दुखी आदमी की व्यथा सुन ले तो उनका दुःख भी थोड़ा कम हो सकता है। कंठस्थ ज्ञान को सुनने वाले के स्वाध्याय हो सकता है और सुनाने वालों का भी परिष्कार भी हो सकता है।
त्यागी-ज्ञानी पुरुषों का प्रवचन भी सुना जा सकता है। आगम वाणी, पवित्र वाणी कानों में जाती है तो ऐसी कल्याणी वाणी को सुनकर हमारे कान भी धन्य हो जाते हैं। रोहिणेय चोर के तो बिना इच्छा भी भगवान की वाणी कानों में पड़ गई, उससे भी उसका हित हो गया। कोई मन से भगवद् वाणी, आगम वाणी, ज्ञानी चारित्रात्माओं की वाणी सुन ले तो उसका कल्याण तो निश्चित ही हो सकता है। कान की शोभा कुंडल पहनने से हो सकती है पर अच्छी वाणी को सुनने से कानों का सदुपयोग हो सकता है। कोई अच्छी शिक्षा या सलाह दे तो उसे सुनना भी कानों का सदुपयोग है। विनय की शिक्षा देने वाले का कोई असम्मान कर देता है तो मानना चाहिए कि वह व्यक्ति आने वाली लक्ष्मी को डंडे से रोक देता है। कान का दुरुपयोग न हो, दूसरों की निंदा सुनने से बचें, अनावश्यक बातों को सुनने में व्यर्थ समय ना गँवाएँ। चक्षु का उपयोग अच्छी पुस्तक, आगम आदि पढ़ने में, चारित्रात्माओं के दर्शन करने में करें, तो आँखों का भी सदुपयोग हो जाता है।
अच्छा सुनना, अच्छा देखना, अच्छा बोलना, अच्छा सोचना और अच्छा काम करना इनसे हमारी आत्मा अच्छी रह सकती है। पाँचों ही इंद्रियों का सदुपयोग करें, दुरुपयोग करने से बचने का प्रयास करें। नाक से दीर्घ श्वास का प्रयोग, प्राणायाम किया जा सकता है। जिह्वा से स्वाद लिया जाता है पर स्वाद और विवाद में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। स्पर्शनेंद्रिय के भी संयम का अभ्यास करें। इंद्रियाँ जीती हुई हैं, संयमित हैं तो बड़ी कल्याणकारी बन सकती हैं। राग-द्वेष से जुड़कर इंद्रिों का उपयोग करते हैं तो पाप कर्म का बंध हो सकता है। अध्यात्म की साधना का महत्त्वपूर्ण सूत्र हैµइंद्रिय संयम। पाँच इंद्रियाँ जो विकास की द्योतक हैं, इनके प्रति हम विवेक की चेतना को जगाए रखें।
स्थानीय तेममं अध्यक्षा, तेयुप अध्यक्ष महावीर लोढ़ा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला, तेरापंथ कन्या मंडल की सुंदर प्रस्तुति हुई। तेममं ने गीत का संगान किया। नवी मुंबई स्तरीय आचार्य महाश्रमण नागरिक अभिनंदन समारोह में गणेश नाईक ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपने विचार प्रस्तुत किए। संयोजक भगवती पगारिया ने सभी का स्वागत कर अभिनंदन पत्र का वाचन किया। गणेश नाईक आदि गणमान्य व्यक्तियों ने पूज्यप्रवर को अभिनंदन पत्र निवेदित किया। महाश्रमण भजन मंडली एवं तेरापंथ किशोर मंडल ने पृथक्-पृथक् गीत की प्रस्तुति दी। प्रवास व्यवस्था समिति की ओर से मदन तातेड़ एवं मनोहर गोखरू ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।