जीवन का निर्माण अनुशासन से ही संभव

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जीवन का निर्माण अनुशासन से ही संभव

गंगाशहर।
आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान नैतिकता का शक्तिपीठ में कार्यशाला में ‘आचार्यश्री तुलसी और अनुशासन’ विषय पर मुनि चैतन्य कुमार जी ‘अमन’ ने कहा कि व्यक्ति निर्माण, चरित्र निर्माण और जीवन निर्माण अनुशासन से ही संभव है। अनुशासन के अभाव में संस्कार और संस्कृति भी सुरक्षित नहीं रह सकती। कहा जा सकता है कि विकास का आधार है-अनुशासन। जब व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण नहीं होता है तब होता है परानुशासन अर्थात् गुरु का अनुशासन। इसलिए आचार्य तुलसी ने घोष दिया था-‘निज पर शासन-फिर अनुशासन।’
मुनिश्री ने आगे कहा कि व्यक्तित्व विकास का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है-अनुशासन। अनुशासन वह नींव का पत्थर है जिस पर जीवन का बहुमंजिला महल खड़ा किया जा सकता है। जीवन को सद्संस्कारों में ढालने के लिए कड़ी मेेहनत की अपेक्षा रहती है। जो व्यक्ति अनुशासन में रहना व सहना सीख जाता है निश्चय ही वह बहुमूल्य हीरा बनकर चमक बिखेरने में कामयाब हो सकता है। मुनि श्रेयांस कुमार जी ने आचार्य तुलसी के जीवन के अनुशासन को परिभाषित करते हुए मधुर गीत का संगान किया।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ उपासक, युवक रत्न राजेंद्र सेठिया ने कहा कि विकास का आधारभूत तत्त्व है-अनुशासन। आज तेरापंथ का अनुशासन जग जाहिर है। जहाँ समूह है वहाँ अनुशासन की अपेक्षा रहती है। आचार्य तुलसी एक ऐसे अनुशास्ता थे जिन्होंने अपने अनुशासन से पूरे धर्मसंघ को आकाश सी ऊँचाईयाँ प्रदान की। इस अवसर पर संस्थान की ओर से आभार व्यक्त करते हुए मंत्री दीपक आंचलिया ने अपने भाव व्यक्त किए। उपाध्यक्ष किशन बैद, कोषाध्यक्ष ललित गुलगुलिया, सहमंत्री राजेंद्र पारख एवं भैरूदान सेठिया आदि की उपस्थिति रही।