मुंबई मर्यादा महोत्सव पर आचार्यश्री तुलसी द्वारा वि0सं0 2011 में समुच्चारित गीत

मुंबई मर्यादा महोत्सव पर आचार्यश्री तुलसी द्वारा वि0सं0 2011 में समुच्चारित गीत

 
गुरुदेव! तुम्हारे चरणों में ये शीष स्वयं झुक जाते हैं।
तव वाङ्मय अमृत-झरनों में ये हृदय हिलोरें खाते हैं।।
 
(1) क्या वर्णन हो उपकारों का, जो जीवन जटिल समस्या है।
उसका भी सुंदर समाधान पाया, हम प्रकट दिखाते हैं।।
 
(2) कैसी थी विशद विराट वृत्ति, जन-जन को जाग्रत करने की।
भयभीतों के भय हरने की, हम सुमर-सुमर सुख पाते हैं।।
 
(3) वह व्याख्या विरल अहिंसा की, हिंसा की झलक जरा न जहाँ।
व्यापक मैत्री का विमल रूप, जन-जन जिसको अपनाते हैं।।
 
(4) खुद जागो और जगाओ जग को, यही दया है दान यही।
इसमें सबका उत्थान मान, जन-जन में जागृति लाते हैं।।
 
(5) संगठन का कैसा जादू, कर डाला सांवरिये-साधु!
झगड़ों की जड़ें जला डालीं, हम सब बलिहारी जाते हैं।।
 
(6) ना शिथिलाचार पनप पाया, संयम की रही छत्र-छाया।
ओ! वीर पिता के वीर पुत्र! तुम पथ हम सरसाते हैं।।
 
(7) वह जटल रहे मर्यादा तेरी, लोह-लेखिनी से लिखिता।
‘तुलसी’ सह समुदित श्वेत-संघ माघोत्सव आज मनाते हैं।।
 
लय: घनश्याम तुम्हारे द्वारे पर---