मेरं शरणं गच्छामि
गण-मंदिर में मर्यादा की, जगजग ज्योति जलाएँ।
हम ज्योतिर्मय बन जाएँ।।
‘मेरं शरणं गच्छामि’ यह मंत्र सदा शिवदायी।
मर्यादा का परकोटा है, जीवन में वरदायी।
मर्यादा के महाकुंभ में, आओ डुबकी लगाएँ।
हम ज्योतिर्मय बन जाएँ।।
मर्यादा से सज्जित है यह, आर्य भिक्षु का शासन।
मर्यादा का पाठ पढ़ाए, महाश्रमण का आसन।
आन-बान है शान संघ-मर्यादा मान बढ़ाएँ।
हम ज्योतिर्मय बन जाएँ।।
मर्यादित, अनुशासित गण यह, चमके ज्यों ध्रुवतारा।
साँस-साँस में मर्यादा का, गूँज रहा जयनारा।
मर्यादा-पुरुषोत्तम प्रभु-चरणों में अर्घ्य चढ़ाएँ।
हम ज्योतिर्मय बन जाएँ।।
मर्यादा का कवच पहनकर, निर्भय हम बन जाएँ।
मर्यादा की कलम हाथ में, लिख दें नई ऋचाएँ।
मर्यादा की शुभ्र-ज्योत्सना, जीवन को चमकाएँ।
हम ज्योतिर्मय बन जाएँ।।
महानगर मुंबई में फैली, मर्यादा की परिमल।
वाशी में अब खिल रहे देखो, मर्यादा के शतदल।
मर्यादा के ‘सुपरस्टार’ गुरुवर को, शीश झुकाएँ।
हम ज्योतिर्मय बन जाएँ।।
लय: जहाँ डाल-डाल पर----