मर्यादा पत्र है गण का छत्र : आचार्यश्री महाश्रमण
वाशी में त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव का हुआ भव्य आयोजन
विश्व का सातवां सबसे बड़ा, भारत का सबसे धनी, फिल्म, फैशन और फाइनेंस की दुनिया का संगम, देश की आर्थिक राजधानी, महाराष्ट्र की प्रशासनिक राजधानी, मुंबादेवी के नाम से जुड़ा हुआ मुंबई शहर। एक और गहराई का संदेश देता अरब सागर और दूसरी और गगनचुंबी इमारतें, भौतिकता की चकाचौंध में डूबा यह शहर पिछले कुछ महीनों से अध्यात्म की यात्रा कर रहा है।युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी यहां के वासियों को साधना के शिखर और अध्यात्म की गहराई से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं। नंदनवन से विहार कर, मुंबई के उपनगरों को पावन करते हुए आचार्य प्रवर ने आिर्थक नगरी को मानो आध्याित्मक नगरी में परिवर्तित कर दिया।
वाशी, नवी मुंबई।
16 फरवरी, 2024
माघ शुक्ल सप्तमी का दिव्य दिवस, जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के महाकुंभ त्रिदिवसीय मर्यादा महोत्सव का मुख्य दिवस कार्यक्रम मर्यादा पुरुषोत्तम युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ प्रारंभ हुआ।
आचार्यप्रवर ने स्वयं खड़े होकर करवाया मर्यादा गीत का संगान:
गणाधिपति गुरुदेव तुलसी द्वारा रचित मर्यादा गीत 'भीखणजी स्वामी! भारी मर्यादा बांधी संघ में' के संगान के समय पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने स्वयं खड़े होकर गीत का संगान किया। आचार्य भिक्षु, आचार्य तुलसी, तेरापंथ धर्मसंघ, मर्यादाओं आदि के सम्मान में अपने आराध्य के इस निर्णय के साथ ही सम्पूर्ण जन मेदिनी ने भी अपने स्थान पर खड़े होकर संगान में सहभागिता निभाई। बहुश्रुत परिषद् सदस्य मुनि दिनेश कुमार जी ने मर्यादा घोष का उच्चारण करवाया।
सारी धरती पर बिछी अंशुमाला:
समणी वृंद ने समवेत स्वरों में तेरापंथ धर्मसंघ एवं मर्यादाओं की स्तुति में संगान किया:
सारी धरती पर बिछी अंशुमाला।
मिला है पंथ भिक्षु वाला।।
जय भिक्षु का वर अनुशासन, सारे जहां में गूंजेगा:
साध्वी वृंद ने सामूहिक गीत की प्रस्तुति में ऐतिहासिक प्रसंगों के उदाहरण देते हुए कुछ ऐसे भाव प्रकट किए:
गण है मेरा मैं इस गण का, मज्जागत संस्कार है।
यही संघ की अखंडता का, एकमात्र आधार है।।
उन पुरखों ने स्वेद बहाकर, खून सुखाकर के अपना।
वैर-जेर के घूंट पिए, मंजूर किया मानों मरना।
भाई वेणी मुनि की याद हृदय में आग लगाती है।।
मुनि वृंद ने उपरोक्त गीत के माध्यम से तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु एवं संतों-सतियों द्वारा सहे कष्टों का वृतांत सुनाते हुए, गण निष्ठा की सीख दी।
तेरापंथ की नवम् साध्वी प्रमुखा ने दी मर्यादा में, गुरु आज्ञा में रहने की प्रेरणा:
साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि आज हम सभी तेरापंथ का यह सुरम्य प्रासाद देख रहें हैं, इसकी नीवों में त्याग और तप बोल रहा है। यह प्रासाद आज्ञा निष्ठा, अनुशासन निष्ठा, गुरु निष्ठा और गण निष्ठा के स्तंभों पर प्रतिष्ठित है। इसकी दीवारों पर अहंकार और ममकार के विसर्जन की गाथाएं लिखी हुई हैं। इसके परिपार्श्व में विकास के सुमन खिल रहें हैं। यह तेरापंथ धर्मसंघ न जाने कितने कितने आत्मार्थी लोगों के लिए आश्रय स्थल, आधार और त्राण बना हुआ है।
तेरापंथ की तेजस्विता निरंतर बढ़ रही है उसका कारण है कि यह अनुशासित और मर्यादित धर्म संघ है। मर्यादा महोत्सव के अवसर पर अतीत का सिंहावलोकन, वर्तमान में व्यवस्थापन और भविष्य की नीतियों का निर्धारण होता है। यह समय परम पूज्य आचार्य प्रवर के लिए व्यस्ततम समय होता है। आचार्यवर इस समय संघीय गतिविधियों का निरीक्षण, साधु साध्वियों की पृच्छा, सारणा-वारणा एवं चतुर्मासों का निर्धारण करते हैं।
आचार्य भिक्षु अनुशासन के सूत्रधार थे, मर्यादा के मंत्रदाता थे, संगठन को चलाना जानते थे। उन्होंने अपनी प्रज्ञाबल के आधार पर अनुभवों की स्याही एवं श्रम की लौह लेखनी से मर्यादाओं की रेखाओं को खींचा। वे रेखाएं तेरापंथ की भाग्य रेखाएं बन गई। साधना का एक रूप है जिसमें साधु पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति की आराधना करता है और दूसरे रूप में वह व्यवस्था के साथ जुड़ जाता है। जो व्यक्ति मर्यादा, अनुशासन, आज्ञा का सहारा लेता है वह विकास के शिखर को छू लेता है और जो व्यक्ति मर्यादा, अनुशासन और आज्ञा का पालन नहीं करता वह पतन के द्वार पर चला जाता है। हम गुरु इंगित की आराधना करें, मर्यादाओं के सूत्रों को अपने जीवन में उतारें।
तेरापंथ के राम का धर्मसंघ के नाम संदेश :
अनुकंपा के उत्प्रेरक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत देशना में कहा-अहिंसा, संयम और तप से समन्वित धर्म उत्कृष्ट मंगल है। आज हम धर्म से जुड़े हुए संघ का 160वां वार्षिक उत्सव- मर्यादा महोत्सव मना रहें हैं। जैन शासन में श्वेतांबर तेरापंथ परम्परा को शुरू हुए करीब 264 वर्ष हो गये हैं। वि.सं. 1817 में परम पूजनीय महामना आचार्य भिक्षु ने उसे संस्थापित किया था। उन्होंने संघ के लिए मर्यादाओं का निर्माण किया। वि.सं. 1859, माघ शुक्ला सप्तमी को लिखा गया मर्यादा पत्र मर्यादा महोत्सव का आधार है, संघ का छत्र है।
'मर खपणो पिण सूंस नहीं भांगणों'
यह संगठन मूलत: अध्यात्म और धार्मिकता पर आधारित है। गृहत्यागी इसके सदस्य हैं, गृहवासी भी इससे जुड़े हुए हैं। मैं धर्मसंघ को श्रद्धा के साथ नमन करता हूँ। चारित्रात्माओं ने आत्म कल्याण के लिए, मोक्ष की प्राप्ति के लिए के चारित्र को स्वीकार किया है। सम्यक्त्व युक्त चारित्र अमूल्य संपदा है। यह अंतिम श्वास तक सुरक्षित रहे। सब चारित्रात्माओं का यह ध्येय सूत्र होना चाहिए :
१. मेरा साधुत्व मुझे प्यारा है ।
२. मेरा संघ मुझे प्यारा है।
३. मेरा गुरु मुझे प्यारा है।
हमारी आत्मनिष्ठा, संघ निष्ठा, आज्ञा निष्ठा, आचार निष्ठा और मर्यादा निष्ठा सतत प्रवर्धमान होती रहे। हमारे धर्मसंघ की मौलिक मर्यादाएं हैं:
१. सर्व साधु-साध्वियां एक आचार्य की आज्ञा में रहें।
२. विहार-चातुर्मास आचार्य की आज्ञा से करें।
३. अपना-अपना शिष्य-शिष्या न बनाएं।
४. आचार्य भी योग्य व्यक्ति को दीक्षित करें। दीक्षित करने पर भी कोई अयोग्य निकले तो उसे गण से अलग कर दें।
५. आचार्य अपने गुरु भाई या शिष्य को उत्तराधिकारी चुने, उसे सब साधु-साध्वियां सहर्ष स्वीकार करें।
पदाधिकारियों को वर्ष में एक बार श्रावक संदेशिका पढ़ लेनी चाहिए:
हमारे यहां चारित्रात्माओं के लिए अनुशासन संहिता, मर्यादावली आदि एवं श्रावक-श्राविकाओं के लिए श्रावक संदेशिका निर्मित है। संस्थाओं के पदाधिकारियों को तो वर्ष में एक बार श्रावक संदेशिका पढ़ लेनी चाहिए। आचार्यप्रवर ने धर्मसंघ की संगठन मूलक एवं प्रवृत्ति मूलक संस्थाओं का नामोल्लेख करते हुए, उनकी विशेषताओं का मूल्यांकन करते हुए, उन्हें धार्मिक एवं आध्यात्मिक पथ पर प्रगति करने की पावन प्रेरणा प्रदान की। अणुव्रत अमृत वर्ष के उपलक्ष में 12 मार्च 2024 तक प्रतिदिन गुरुकुलवास एवं बहिर्विहार के कार्यक्रमों में अणुव्रत गीत संगान की प्रेरणा देकर स्वयं उसका शुभारंभ किया।
चर्तुमासों की घोषणा :
१६०वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर पूज्य प्रवर ने स्वरचित गीत का संगान कर मर्यादा पत्र का वाचन किया। इंतजार की घड़ियों को विराम देते हुए आचार्यप्रवर ने साधु-साध्वियों के चतुर्मासों, समणी केंद्रों एवं उपकेंद्रों की घोषणा की।
प्रेक्षाध्यान नामकरण के 50 वर्ष
पूज्य प्रवर ने प्रेक्षाध्यान नामकरण के 50 वर्षों के उपलक्ष में 30 सितंबर 2024 से 30 सितंबर 2025 तक प्रेक्षाध्यान वर्ष मनाने की घोषणा की। पूज्य प्रवर ने सन 2025 की अक्षय तृतीया डीसा में करने की घोषणा की। साधु-साध्वियों एवं समणी वृंद द्वारा पंक्ति बद्ध, अनुशासन पूर्वक लेख पत्र का सामूहिक वाचन, आचार्य प्रवर द्वारा श्रावक-श्राविकाओं को श्रावक निष्ठा पत्र का वाचन एवं संघ गान का संगान सबको एकता और मर्यादा का पाठ पढ़ा रहा था।
160वें मर्यादा महोत्सव के अवसर पर वाशी, नवी मुंबई में 55 साधु, 114 साध्वियां एवं 39 समणियों कुल 208 की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया ।
160वें मर्यादा महोत्सव के उपलक्ष में युगप्रधान परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा रचित गीत
ओ सन्तों! भैक्षव शासन प्यारा।
ओ सन्तों! जिनशासन रखवारा।।
भैक्षव शासन जिनशासन की सेवा धर्म हमारा ।।
आत्मसाधना करने खातिर संघ-शरण स्वीकारी।
आत्मा को भावित कर पाएं संयम-तप के द्वारा II
साधर्मिक चारित्रात्माओं को साता पहुंचाना।
पूर्ण समीक्षा कर मौके पर पचखाना संथारा II
आज्ञा-अनुशासन-आलोयण रत्नाधिक का सुविनय।
तथ्य भाषिता रखना हितकर वचन न बोलें खारा II
निर्धारित आचार सुपालन में हो निष्ठा पावन।
पंच महाव्रत प्रवचनमाता देंगे मोक्ष पिटारा II
गण-मर्यादा संरक्षण में सतत सजगता वर हो।
जय जय शासन जय मर्यादा अनुगुंजित हो नारा II
वीर भिक्षु तुलसी गुरु बालूनन्दन को शत वन्दन। 'महाश्रमण' वाशी नगरी में फैला धर्म उजारा।
नवी मुम्बई महानगर में फैला धर्म उजारा II
लय - रे भाई। ओ तैं ....