सफलता के पौधे को मिलता रहे परिश्रम के जल का सिंचन : आचार्यश्री महाश्रमण
वाशी, नवी मुंबई।
15 फरवरी, 2024
मर्यादा समवसरण में महाप्रज्ञ पट्टधर आचार्य श्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में मर्यादा महोत्सव के द्वितीय दिवस का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ।
संघ ही शरण:
मुमुक्षु बहनों ने समवेत स्वरों में 'भिक्षु का ये शासन है, प्राण अनुशासन है' गीत की प्रस्तुति के माध्यम से संघ सेवा एवं समर्पण की भावना को मुखरित किया।
नेता कैसा हो ?
मुख्य मुनि श्री महावीर कुमार जी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा- आचार्य तुलसी ने लिखा है कि जिस धर्म संघ में सतत् एक आचार्य का नेतृत्व है, जिसकी तत्त्व निरुपण की शैली एक है, जिसका एक आचार और एक सामाचारी है, ऐसा तेरापंथ इस जगत् में अर्हत् की आज्ञा के अनुसार जय-विजय को प्राप्त करे। भगवान महावीर का, भिक्षु स्वामी का तेरापंथ एक ओजस्वी, तेजस्वी, शक्ति संपन्न धर्म संघ है जो सारे जग को नित नई रोशनी देने वाला है। इस धर्मसंघ को सिंचित, पल्लवित करने में पूर्वाचार्यों ने, साधु-साध्वियों ने एवं श्रावक-श्राविकाओं ने भी अपना योगदान और बलिदान दिया है। हमें समय-समय पर कुशल नेतृत्व प्राप्त हुआ है। नेता के पांच गुण बताए गए हैं:
१. जो सब दृष्टियों से सक्षम हो।
२. जो सब दोषों को दूर करने वाला हो।
३. जो सामंजस्य विधायक हो।
४. जिसका वचन आदेय हो।
५. जो निर्णायक मति वाला हो।
हमें ऐसे ही नेता प्राप्त हैं जो हम सब की जीवन नैया को खेने वाले हैं।
आणा प्राणां में बड़ो कुण ?
आचार्य श्री तुलसी ने लिखा है:
आणा प्राणां में बड़ो कुण?
यदि खड़ो विवाद।
आण प्रमुखता जिण विना,
बने प्राण बेस्वाद।
विद्या बल वैभव विपुल,
प्रभुता परम पुनीत।
पर आज्ञा बल स्यूँ विकल,
सदा रहे भयभीत।।
आज्ञा और प्राण में आज्ञा का सर्वोपरि महत्व बताया गया है। समाज में मूल्यों की अपेक्षा होती है, जो समाज जितने मूल्यों से संपन्न होता है, वे ही मूल्य उस समाज की दिशा का निर्धारण करते हैं। कौन सा मूल्य कितना प्रभावशाली है, उसकी कसौटी है उसका परिणाम। परम पूज्य आचार्य भिक्षु ने इस बात को गहराई से पकड़ा कि विनय जिनशासन का मूल है। विनय वही कर सकता है जिसके भीतर कषाय, अहंकार का विलय और समता का प्रादुर्भाव हो गया हो। वही व्यक्ति आज्ञा की आराधना कर सकेगा जिसके भीतर विनय का भाव होगा। आत्मा और मोक्ष को मानना है तो आज्ञा को भी स्वीकारना होगा। आज्ञा के बिना धर्म का अंश मात्र भी नहीं है।
कौन सी नीति अच्छी: मर्कट या मार्जार?
शासन अनुशासन के बिना निष्प्राण है, उसके लिए समर्पण की आवश्यकता है। दो तरह की नीतियां बताई गई हैं - मर्कट (बंदर) नीति और मार्जार (बिल्ली) नीति। बंदर का शिशु अपनी मां को अपने सामर्थ्य के अनुसार पकड़ कर रखता है, उसका चिंतन रहता है कि मेरी रक्षा मुझे स्वयं करनी है। वहीं दूसरी ओर बिल्ली का बच्चा बिल्कुल निश्छल रहता है, वह समर्पित रहता है और मां के आधार पर जीता है। वह अपनी मां को नहीं अपितु उसकी मां उसे पकड़ कर रखती है। एक शिष्य भी यदि स्वयं को गुरू चरणों में सर्वात्मना समर्पित कर देता है तो उसके विकास का, उसके हित का चिंतन स्वयं गुरु करते हैं। जो स्वयं के सामर्थ्य को महत्त्व देता है, वह अहं भाव में आकर अपने विकास को अवरूद्ध कर देता है। हम सभी संघ रूपी रथ में सवार रहें, एक गुरु के अनुशासन में रहें, आज्ञा, अनुशासन और मर्यादा की शरण में रहें।
महाप्रज्ञ पट्टधर ने दिए विनय के संस्कार:
परम् पावन आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपनी मंगल देशना में कहा िक अनुशासन और मर्यादा को सम्यकतया संचालित करने के लिए विनय के संस्कारों का सम्पोषण अपेक्षित होता है। एक ओर विनय होता है तो दूसरी ओर वत्सलता का भाव भी अपेक्षित होता है। देखा जाए तो विनय और वात्सल्य दोनों में निरहंकारिता का भाव रहता है। विनय केवल छोटों के लिए ही नहीं, बड़ों के लिए भी काम्य होता है। यदि शिष्य में विनय है तो वह शिष्य भी महान है और यदि गुरू में विनय नहीं है तो एक अपेक्षा से गुरू छोटा हो जाएगा और शिष्य बड़ा हो जाएगा। गुरु कभी कड़ाई भी कर सकते हैं पर उसके पीछे भी शिष्य के हित की भावना होती है। आचार्य डालगणी कभी कड़ाई करते, गुरुदेव तुलसी भी कभी-कभी कड़ाई करते, इसके लिए भी बल चाहिए। प्रशासन भी कड़ाई करता है, न्यायालय भी दंड निर्धारित करते हैं पर इनका लक्ष्य गलत नहीं होता, पृष्ठभूमि में सबके हित की भावना रहती है।
आचार्य श्री महाप्रज्ञ पदारोहण दिवस:
माघ शुक्ला षष्ठी, मर्यादा महोत्सव का मध्यवर्ती दिवस एवं तेरापंथ के दशम् अधिशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का पदारोहण दिवस भी है। गुरुदेव तुलसी ने स्वयं उनका पदाभिषेक किया था। तेरापंथ धर्मसंघ के हमारे इतिहास में आचार्य श्री महाप्रज्ञजी और आचार्य श्री तुलसी इस माने में कोई अतिरिक्त रूप के आचार्य है। इतिहास की अभूतपूर्व और आज तक की अद्वितीय घटना है कि किसी आचार्य ने अपने जीवन काल में अपने पद का परित्याग किया हो। आचार्य महाप्रज्ञ जी जीवन के आठवें दशक में आचार्य पद पर आसीन हुए और उस उम्र में भी उन्होने यात्राएं की। उनमें हमने करुणा और वत्सलता का भाव देखा था। उनके साहित्य, उनके प्रवचन, आगम सम्पादन का कार्य आदि को देखने से उनके ज्ञान की प्रतीति की जा सकती है। उनके पास ज्ञान भी था और उसका प्रस्तुतिकरण भी अच्छा था। आचार्यों की अपनी-अपनी विशेषता हो सकती है, परन्तु संघ की सुरक्षा करना सभी का लक्ष्य होता है। हमारा संघ सुरक्षित रहे और विकास की दिशा में आगे बढ़ता रहे, यही सबका चिंतन होता है। यह मर्यादा महोत्सव संघ को सिंचन देने वाला, संस्कार देने वाला और प्रेरणा देने वाला है।
आज्ञा, संघ एवं आचार्य की आराधना:
हमारे धर्मसंघ में आज्ञा का बहुत महत्व है। आचार्य की आज्ञा संघ में आराधनीय होती है। कोई भी साधु-साध्वी निर्देश के विपरीत चातुर्मास या विहार नहीं कर सकते हैं, ये हमारे संस्कार हैं। आचार्य भी स्वयं आगम की आज्ञा में रहते हैं। यह गण हमारा है, जहां अपेक्षा हो, हमारा योगदान संघ की सेवा में, संघ के विकास में लगे। साधु-साध्वियां ही नहीं, श्रावक-श्राविकाएं भी संघ की आराधना करें। आचार्य की आज्ञा में चलना और उनकी सेवा, सुश्रुषा करना भी सबका दायित्व होता है। विनीत शिष्य आचार्य के लिए साताकारी होते हैं। साध्वीप्रमुखाश्री,मुख्य मुनि, साध्वी वर्या का भी यथायोग्य सम्मान रहे। वृद्ध, रुग्ण चारित्रात्माओं को साता देने का प्रयास करें।
मर्यादा, सेवा, व्यवस्था और साधना के प्रति जागरूकता रहे। दूसरों के कल्याण एवं परस्पर सौहार्द की भावना बढ़ती रहे। सफलता के पौधे को परिश्रम के जल का सिंचन मिलता रहे। महासभा के अधिवेशन के संदर्भ में आचार्य प्रवर ने कहा कि संस्था शिरोमणि महासभा धर्मसंघ और समाज को प्राप्त है। यह समाज के लिए भाग्य की बात है। विकास परिषद के सदस्य पदमचंद पटावरी ने आचार्य प्रवर की तीन विशेषताओं- प्रबंधन शैली, भाषा विवेक एवं निस्पृहता पर प्रकाश डाला। महासभा अध्यक्ष मनसुख सेठिया, मुंबई प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, सुमति चंद गोठी, सूरत चातुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष सुरेंद्र सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल वाशी ने गीत की प्रस्तुति दी। डॉ. वंदना ने अपनी शोध पुस्तक पूज्य प्रवर की सन्निधि में लोकार्पित की। सूरत चातुर्मास एवं भुज मर्यादा महोत्सव के लोगो का अनावरण पूज्य सन्निधि में किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुिन िदनेश कुमार जी ने िकया।