आत्म शोधन करने का एक उपाय है ध्यान : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्म शोधन करने का एक उपाय है ध्यान : आचार्यश्री महाश्रमण

उरण, 7 फरवरी, 2024
अनुकंपा के उत्प्रेरक, महान योगी, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने उरण प्रवास के दूसरे दिन पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म साधना के अनेक प्रयोग निर्दिष्ट हैं। स्वाध्याय कर्म निर्जरा का माध्यम है तो ध्यान भी साधना का एक प्रयोग होता है। तप में रत रहना, अपाप भाव में रहना, ये सब उपाय आत्मा को निर्मल बनाते हैं। अध्यात्म साधना में आगे बढ़ने का और आत्म शोधन करने का एक उपाय है-ध्यान। आज विश्व में अनेक ध्यान पद्धतियाँ अलग-अलग नामों से प्रचलित हैं। योग का भी प्रसार हुआ है, चिकित्सा के क्षेत्र में भी योग का प्रयोग होता है। शरीर के अंगों के लिए यौगिक क्रियाएँ प्रचलित हैं। अध्यात्म की साधना में भी योग का बड़ा व्यापक स्थान है। आचार्य हेमचंद्र ने ‘अभिधान चिंतामणि’ में कहा है कि मोक्ष का उपाय योग है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र ये सभी योग हैं।
जो जोड़ने की चीज होती है, वो योग है। जो मोक्ष के साथ आत्मा को जोड़ दे, वो योग है। धर्म की सारी प्रवृत्तियाँ योग हैं, क्योंकि वे मोक्ष से जोड़ने वाली होती हैं। जैन तत्त्वविद्या में योग की एक और परिभाषा प्राप्त होती है-शरीर, वचन और मन की प्रवृत्ति योग है। योग से अयोग की दिशा में बढ़ने पर मोक्ष प्राप्त हो सकता है। ध्यान-अध्यात्म साधना का एक प्रयोग है, जैसे शरीर में सिर का स्थान है, वृक्ष के लिए मूल का महत्त्व है, वैसे ही अध्यात्म में ध्यान का महत्त्व है। ध्यान पद्धतियाँ अलग-अलग मिलती हैं, संप्रदाय भी अलग-अलग हैं। संप्रदायों में भी प्रायः समानता मिलती है, अंतर बहुत कम हैं, अधिकतर बातों में समानता मिल जाती है। संप्रदायों में अलगाव होने पर भी आपस में लगाव, सद्भावना होनी चाहिए। ध्यान पद्धतियाँ भी अलग-अलग हैं पर मूल तत्त्वों में समानता मिल सकती है। चेतना सभी की समान होती है, आकारों में कुछ भिन्नता हो सकती है।
भाव क्रिया का अभ्यास बढ़ जाए, वो भी किसी अंश में ध्यान की प्रक्रिया है। चलते समय या सोते समय भाव क्रिया कर सकते हैं। दैनंदिन जीवन में ध्यान को जोड़ सकते हैं। आचार्य तुलसी के समय में जयपुर में सन् 1975 में प्रेक्षाध्यान का नामकरण हुआ था। भाव क्रिया, प्रतिक्रिया विरति, मैत्री मिताहार, मितभाषण, इन पाँच सूत्रों को जीवन शैली के अंग बना लें। कायोत्सर्ग, दीर्घ श्वास प्रेक्षा आदि अनेकों प्रयोगों से संयुत प्रेक्षाध्यान का अच्छा प्रयोग किया जा सकता है। हम ध्यान की आराधना करने का प्रयास करें।
अमृत देशना के उपरांत पूज्यप्रवर ने नवदीक्षित मुनि मुकेश कुमार जी को छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण करवाया। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में अणुव्रत समिति, मुंबई के अध्यक्ष रोशनलाल मेहता, उरण व्यापारी संघ से हस्तीमल मेहता, पूर्व एमएलए मनोहर भोईर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। समणी मधुरप्रज्ञा जी ने गुरु दर्शन कर अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला, किशोर मंडल, कन्या मंडल ने अपनी प्रस्तुति दी। कन्या मंडल एवं तेयुप ने पृथक-पृथक गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।